Let's Go to God
Why do we seek God? What is God? Is God light, virtue or knowledge? How can we know that this is God!
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That thing is natural - Which is common with every living being?
This means that our common Nature is God. What is Our common Nature? - What is that Nature Which is the same in every living being?
For Which We do not fight, We have got it only naturally. What is that? Let's see today and understand that!
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Who are we all influenced by the most?
By beauty: Whatever the beauty, We are bound to be impressed.
Why?
Beauty consists in the general form of many of our qualities. In beauty lies the flow of our qualities. Note and Rhythm are born out of every flow. There will be rhythm here too, where there is flow. There is melodiousness and fervor in the music. What is the source of identification of the attribute? One Who has that quality, means that the qualities make the matter to be identified. So How will We identify the world and with Whom? Who is with us, Who gives us the identity of the World or Nature, gives knowledge, has named that source as God, Rabb, Parmatma and Allah.
So our living till God and our thinking are all mental dimensions.
So our knowledge of the nature of nature and the quality of matter's natural form is deep but limited. Very deep but still limited. This limited feeling experience does not satisfy the mind. The mind fails in itself. Now let's talk about God's transcendence and God's Nature.
3
Whenever the mind of any person goes to that highest state of perfection of 'mind' in the pursuit of knowledge that is available to him, then from that attainment begins to flow a force in living. Religion calls this 'Ananda' and the mind, thinking, feeling of a person become active in such a speed that we can also call that flow as 'spiritual knowledge' - which we simply call love.
This is called 'Heart-Chakra', and this is called 'Khuda-Pyaar', because this love is also called 'Ishwariya love'. It is innocent, selfless and reckless. There is nothing in the universe against this. This is the state that we can say that 'God loves himself' or we can say that 'clapping with one hand has started'.
And this stithi is glorious because it is a symbol of knowledge and this state makes a person full of good fortune. Now from here begins the true and real spiritual journey, the journey of deep knowledge begins.
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चलो खुदा की ओर चलें
खुदा की हम क्यों तलाश करतें हैं? खुदा क्या है? खुदा रौशनी है, गुण है या ज्ञान है ? हम कैसे जान पाएंगे कि यह है खुदा !
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वो चीज़ कुदरती होती है- जो हर जीव के पास समान होती है?
मतलब यह हुआ कि हमारा जो आम स्वभाव है, वोही खुदा है। आम स्वभाव हमारा क्या है?- वो स्वभाव क्या है जो हर जीव में एक जैसा है?
जिस के लिए हम सघर्ष नहीं करते बस स्वाभाविक रूप में ही हम को प्राप्त है। वो क्या है? चलो आज हम देखें और उस को समझे !
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हम सब से ज़्यादा प्रभावित किस से होतें हैं?
सुंदरता से: सुंदरता कोई भी हो, हम प्रभावित होंगे ही।
क्यों?
सुंदरता में हमारे बहुत गुणों का सामान्य रूप होता है। सुंदरता में हमारे गुणों का बहा होता है। हर बहा में से ही सुर और ताल का जन्म होता है। यहाँ पर भी लयबद्धता होगी, वहीँ पर संगीत होता है. संगीत में मधुरता और रैवानगी होती है। गुण की पहचान का स्रोत क्या होता है ? जिस में वह गुण होता है, मतलब कि गुण पदार्थ की पहचान करवातें हैं।तो हम संसार की पहचान कैसे करेंगे और किस से करेंगे? कौन है हमारे पास , जो हमे संसार या कुदरत की पहचान दे, ज्ञान दे, उस स्रोत को नाम दिया है खुदा, रब्ब, परमात्मा। ...
सो परमात्मा तक हमारा जीना और हमारा सोचना सब मानसिक आयाम है।
सो हमारा स्वाभाविक रूप और पदार्थ का स्वाभविक रूप का गुणरूप का ज्ञान गहरा है पर सीमित है। बहुत ही गहरा पर फिर भी सीमित है। यह सीमित एहसास का अनुभव मन को संतुष्टि नहीं देता। मन खुद में विफल ही रहता है। अब बात करतें हैं खुदा के पार की और खुदा के स्वभाव की।
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3
जब भी किसी भी व्यक्ति का मन ज्ञान को प्राप्त करने में 'मन' की पूर्णता की उस उच्चतम अवस्था में चला जाता है जो उसे उपलब्ध होती है तो उस प्राप्ति से जीने में एक सकिर्या बहा बहना शुरू होता है। धर्म इस को 'आनंद' कहता है और व्यक्ति का दिमाग, सोच, भावना एक ऐसी गति में सकिर्या हो जातें हैं कि उस बहा को हम 'भावात्मिक ज्ञान' भी कह सकतें हैं -जिस को हम साधारण रूप में प्यार कहतें हैं।
इस को ही 'दिल-चक्रा' कहतें हैं, और इस को ही खुदा-प्यार कहतें हैं, क्योंकि यह प्यार ईश्वरारिया प्रेम भी कहतें हैं। यह निर्दोष, निरस्वार्थी और निर्विकार होता है। इस के विरोध में ब्रह्माण्ड की कोई भी वस्तु नहीं होती। यह वो अवस्था है जिस को हम कह सकतें हैं कि 'खुदा खुद को ही प्यार करता है' या फिर कह सकते हैं कि 'ताली एक हाथ से बजने लगी है '
और यह स्तीथी गौरवशाली होती है क्योंकि यह ज्ञान का प्रतीक है और यह अवस्था व्यक्ति को सौभाग्य भरपूर बना देती है। अब यहाँ से शुरू होती है सही और असली आध्यत्मिक यात्रा शुरू, गहरे ज्ञान की यात्रा शुरू।