Call it 'I' or the Universe;
Call it a Walk or a Stop;
Call it Experience or Awareness;
Whatever I say, Still it is Nothing,
This Journey of Life
What Name Shall I Give?
Worldly Dimension:
I did not like the character of Relationship, Which character am I hungry for and Why do I need a person of that Character? I got the answer to this question after 37 years - When I started feeling the same Character in Myself. This is What I have learned from worldly life that WE are What WE care for, no one else.
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Mental dimensions:
Ours or Others, True and False, Good and Bad, Pass and Fall, Giving or Taking, Virtue and Demerit and Religion and World; With all this there is some Thought or Feeling – It was my nature to look deeply and understand that. When I saw that this discrimination is only a medium - through Whom one gets the experience of sorrow and happiness, Then I became empty.
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Intellectual Dimension:
Who Am I? Who am Why do I need to be? I did not know When my questions became the way. When I reached the destination, I saw that I was beyond Sorrow, Pain, Suffocation, Stress and Worry. What happened ?
This question of mine took me to the point of Who I am - Who I was and Who I will always be.
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Religious Dimension:
I was born in a Sikh household; Krishna and Shiva's dreams started coming and a musical pattern resonated in my existence from Quran. The Nature of Silence began to rise deep in me. So the religious question arose in me – Which religion do I belong to? Traveling through Religious texts taught me that True religion is that Which is born from within a person.
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Philosophy Dimension:
Deep Thinking that Descends from the Cosmic. Sometimes through imagination, Sometimes through ideas and Sometimes through experiences, understands the behavior of Life. Just as there is a heart between Mind and Soul, in the same way there is a Philosophy between Science and Religion. Philosophy is also the heart-chakra for me - Life gives evidence of the mystery of life - from here the journey of Religion and Science begins. Philosophy showed me the way to the unknown-dimension Just as love romanticized me, So Philosophy romanticized me to the universe. I learned from Philosophy What the Soul is - not from Religion. I am very much in Love with the Philosopher's Brooch Spinoza.
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Technology Dimension:
The TV remote made me curious that If a remote can have this power, then How much will it be in a person. This curiosity was so powerful that I am walking on the path till today and till now the destination has not come.
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Spiritual Dimension:
Not only Humans- Animals and Birds too; Not only Trees and Flowers - Shoes and Suits too; Not just Thought or Experience - Imagination and Idea too; Not only Religious books, Histories and Proverbs - the existence of Every Word became Spiritual for me, Which arose in me the Question, What is life Beyond the Soul?
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Cosmic Dimension:
My Being - Like Not Being;
Like I am but I am not;
My being and non-being are the Same;
So This experience took me on the Journey of Death.
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Death Dimension:
-What is Death?
- This will be understood When we know what life is?
As long as We look through the Window of any Thought, Feeling or Desire of Life, We will never be able to understand or see life. When We have seen life with an Empty EYE and understood it with an Empty BRAIN, Then at that very moment We will understand that the existence of Death and Life is not the same - as We understand it. The Death Dimension is the Conscious Dimension.
The easiest way to Go into the Conscious Dimension is Surrender. To reach Surrender, We have bridges – Which We have to cross. To Meditate - To Love or To Seek.
Surrender in itself is Knowledge, Meditation, Love, Life and Death. This Death Dimension has to become the Energy Dimension. As We become Conscious, So will We become ENERGY.
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Energy Dimension:
Not only beyond life but also Beyond Death; Not only positive energy but also beyond negative energy, a dimension that is empty, that is space, that is immeasurable - endless - for Which there is no Word - no Thought, no Feeling, no Experience. It is neither a Mystery nor a Miracle. is What? Endless Space, 5 Feet & 4 Inch In My Existence - How?
Now the Question has arisen that I am in Space or Space is in me or We both are in Each Other?
If both of US are in Each Other then the Question arises that What is that wall Which separates us from Each Other?
Thought or Feeling?
Experience or Misunderstanding
Thought also Exists, Feeling, Experience and Misunderstanding also Exists. So every Existence is Endless?
Which Energetic particle becomes soil, Which becomes Thought, and Which becomes Life and Death?
At this stage I have learned that Whatever is my positive side- will travel negative and Whatever is negative part of me will travel positive. Then the Journey after that, Which tells What is the right form of Energy - I am going on that NOW---
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इस को 'मैं' कहूँ या ब्रह्माण्ड;
इस को चलना कहूँ या रुकना;
इस को अनुभव कहूँ या जागरूकता;
कुछ भी कहूँ, फिर भी यह कुछ नहीं,
यह जीवन-यात्रा
क्या नाम दूं !
संसारी आयाम:
रिश्तें का किरदार पसंद आया ही नहीं, मैं किस किरदार की भूखी हूँ और क्यों मुझ को वो ही किरदार का इंसान चाहिए? यह सवाल का जवाब मुझे 3७ साल बाद मिला- जब मैंने खुद में वोही किरदार अनुभव करना शुरू किया। मैंने संसारी जीवन से यही सीखा है कि हम जिस चीज़ की भाल करतें हैं, वोही हम होतें हैं, कोई और नहीं।
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मानसिक आयाम:
अपना और पराया, सच और झूठ, अच्छा और बूरा, पास और फ़ैल, पुण्य और पाप, गुण और अवगुण और धर्म और संसार; इन सब के साथ कोई सोच है या भावना- उस को गहराई तक देखना और समझना मेरा स्वभाव रहा। जब देखा कि यह भेद-भाव सिर्फ एक माध्यम है- जिन से दुःख और सुख का अनुभव मिलता है तो मैं खाली हो गई।
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बौद्धिक आयाम:
मैं कौन हूँ? कौन हूँ? मेरे होने की क्यों ज़रुरत है? मेरे सवाल कब राह बन गए पता ही न चला। मंज़िल पर जब पहुंची तो देखा कि मैं दुःख दर्द, घुटन, तनाव और फ़िक्र से पार हूँ। हुआ क्या ?
मेरा यह सवाल ही मेरे को उस बिंदु पर ले गया, जो मैं हूँ - जो मैं थी और जो मैं सदा रहूंगी।
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धार्मिक आयाम:
मैं सिख घर में पैदा हुई; कृष्णा और शिव जी के सपने आने लगे और मेरे अस्तित्व में एक संगीत की तर्ज़ गूंजने लगी। चुप का स्वभाव, मेरे गहरे में उठने लगा। तो मेरे में धार्मिक सवाल पैदा हुआ- मैं किस धर्म की हूँ?
धार्मिक ग्रंथों की यात्रा ने मेरे को सिखाया कि सही धर्म वोही होता है, जो व्यक्ति के भीतर से जन्म लेता है।
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फिलॉसफी आयाम:
गहरी सोच जो कॉस्मिक में से उतरती है। कभी कल्पना के ज़रिये कभी आईडिया के ज़रिए और कभी अनुभवों के ज़रिये जीवन का व्यवहार समझती है। जैसे मन और आत्मा के बीच दिल होता है ठीक वैसे ही साइंस और धर्म के बीच फिलॉसफी। फिलॉसफी भी मेरे लिए हार्ट-चक्र है - जी जीवन के रह्सयमई होने का सबूत देती है- यहाँ से शुरू होती है धर्म और साइंस की यात्रा शुरू। फोलोस्फी ने मेरे को अज्ञात-आयाम की राह दिखाई जैसे प्यार ने मेरे को रोमांटिक बनाया वैसे ही फिलॉसफी ने मेरे को ब्रह्मण्ड के लिए रोमंटिक बनाया। मैंने फिलॉसफी से जाना कि आत्मा क्या है- धर्म से नहीं। मेरे को फिलॉस्फर 'ब्रोच स्पिनोज़ा ' से बहुत लगाव है।
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टेक्नोलॉजी आयाम:
टीवी रिमोट ने मेरे में जिज्ञासा जगा दी कि एक रिमोट में यह शक्ति हो सकती है तो व्यक्ति में कितनी होगी। यह जिज्ञासा इतनी शक्तिशाली थी कि मैं आज तक राह पर चल रही हूँ और अभी तक मंज़िल नहीं आई।
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आत्मिक आयाम:
इंसान ही नहीं- जानवर और पक्षी भी; पेड़ और फूल ही नहीं - जूता और सूट भी; सोच या अनुभव ही नहीं - कल्पना और आईडिया भी; धार्मिक किताबें, हिस्टरी और कहावतें ही नहीं - हर शब्द का अस्तित्व मेरे लिए आत्मिक बन गया जो मेरे में सवाल पैदा हुआ कि आत्मा के पार क्या जीवन है ?
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कॉस्मिक आयाम:
मेरा होना- न होने जैसा ; जैसे हूँ-पर नहीं भी हूँ; मेरा होना और न-होना एक जैसा ; तो यह अनुभव मेरे को मौत की यात्रा पर ले गया।
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मौत आयाम:
मौत क्या है?- यह समझ आएगा जब हम यह जान लेंगे कि जीवन क्या है?
जब तक हम जीवन की किसी सोच, भावना या कामना के झरोखे से देखेंगे तो जीवन को कभी न ही समझ पाएंगे और न ही देख पाएंगे। जीवन को जब हम ने खाली आँख से देख लिया और खाली बुद्धि से समझ लिया तो हम उसी वक़्त यह समझ जाएंगे कि मौत और जीवन का अस्तित्व वैसा है ही नहीं - जैसा हम समझतें हैं। मौत आयाम है चेतन आयाम।
चेतन आयाम में जाने का सब से सरल मार्ग है समर्पण। समर्पण तक पहुंचने के लिए हमारे पास पुल हैं- जिन को हम ने पार करना है। ध्यान करना- प्यार करना या खोज करनी।
समर्पण खुद में ही ज्ञान है, ध्यान है, प्रेम है, जीवन है और मौत है।इस मौत आयाम ने ही ऊर्जा आयाम बन जाना है। जैसे जैसे हम होशमंद होते जाएंगे तैसे तैसे ही हम ऊर्जा बनते जाएंगे।
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ऊर्जा आयाम :
जीवन के पार ही नहीं मौत के पार भी; सकारात्मक ऊर्जा ही नहीं नकारात्मिक ऊर्जा के पार भी , एक ऐसा आयाम जो खाली है, जो स्पेस है, अथाह है- अंतहीन है - जिस के लिए कोई शब्द नहीं है- कोई सोच नहीं, कोई भाव नहीं, कोई अनुभव नहीं. यह न ही रहस्य है और न ही चमत्कार। है क्या? अंतहीन स्पेस , ५ फ़ीट और ४ इंच के मेरे अस्तित्व में - कैसे?
अब सवाल पैदा हुआ है कि मैं स्पेस में हूँ या स्पेस मेरे में हैं या हम दोनों एक दूसरे में हैं?
अगर हम दोनों ही एक दूसरे में हैं तो सवाल पैदा होता है कि वो कौन सी दीवार है जो हम को एक दूसरे से अलग करती है?
सोच या भाव ?
अनुभव या गलतफ़हमी
सोच का भी अस्तित्व है, भाव का भी अनुभव का भी और गलतफहमी का भी। हर अस्तित्व अंतहीन है तो ?
कौन सा ऊर्जा-तत्त मिटटी बनता है, कौन सा सोच बन जाता है, और कौन सा जीवन और मौत बन जाता है?
इस मुकाम पर मैंने यह सीखा है कि जो भी मेरा पॉजिटिव हिस्सा है- वो नेगेटिव यात्रा करेगा और जो मेरा नेगेटिव हिस्सा है, वो पॉजिटिव यात्रा करेगा। फिर उस के बाद की वो यात्रा, जो बताये कि ऊर्जा का सही रूप क्या है- उस पर अभी मैं चल रही हूँ---
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