I am the traveler of the moment absorbed the ages
How my experience in my stay moments would have made me bigger and deeper. from which it becomes easier to understand the secret of life
Now :
I will enjoy my journey, my experience and myself.
Today I have to move forward, not because I have to, but because I want to.
Today, the moments spread in height and depth say - 'Never give up on the beginning'
Why? I didn't understand this, just gave myself permission with full blessing that - 'Go ahead'
Now till today I am moving forward, I am a moment, but I am absorbing the era.
चुप की गहराई में से उचाई को छूता हुआ एक अनोखा और सुन्दर पल - जिस में कैसे रहना है, कैसे सीखना है, कैसे आगे बढ़ना है और कैसे खुश होना है, यह सब अनुभवों का स्रोत ,मेरे ही भीतर, मेरे ही बाहर , चारों तरफ फैला हुआ है - जिस के भीतर और बाहर अद्भुत जीवन की यात्रा का अद्भुत एहसास खिलता है .
अब :
मैं अपनी यात्रा, अपने अनुभव और खुद आपने आप का आनंद लूंगी।
आज मैंने कदम को आगे बढ़ना है , इस लिए नहीं कि मेरे को करने पड़ेंगे,
बलिक इस लिए कि मैं करना चाहती हूँ।
आज ऊंचाई और गहराई में फैले हुए पल कहतें हैं कि - ' शुरूआत को कभी न छोड़ो'
क्यों? मैं यह तो नहीं समझी, बस खुद को पूर्ण आशिर्बाद के साथ अनुमति दे दी कि- ' आगे बढ़ जाओ'
अब आज तक आगे ही बढ़ती जा रही हूँ, पल हूँ, पर युग को समाती जा रही हूँ।
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Even today I remember those days when I felt for the first time that nature asks me about my well being. Because I gave permission to nature a few days ago that my life is always free for nature. It was at that moment that I knew how much I love me that I can do everything to be happy and at peace. Trusting nature and loving myself - both of these were one incident, which went on to give me the status of the universe.
Life said on the very first step, 'Today the life in you is deeper than mine'
Aliveness said, 'You are looking very good today'
My admission in my new life was such that my existence blossomed like a flower. My every particle became active like a bud.
My blossoming in my emptiness and the unfathomable love flowing in me, made life an ocean.
आज भी मुझे वो दिन याद हैं जब पहली बार मैंने महसूस किया था कि कुदरत मेरे से मेरा हालचाल पूछती है। क्योंकि मैंने कुछ दिन पहलों कुदरत को अनुमति दे दी कि मेरी ज़िंदगी कुदरत केलिए सदा आज़ाद है। उस पल ही मैंने यह जाना था कि मेरा मुझ को कितना प्यार आता है कि मैं खुश और शान्ति के लिए सब कुछ कर सकती हूँ। कुदरत पर भरोसा और खुद को प्यार करना -यह दोनों ही एक घटना थी, जो मेरे को ब्रह्मण्ड जैसी औकात देने केलिए चल पड़ी।
पहले ही कदम पर ज़िंदगी ने कहा,' आज तेरे में जिन्दापन मेरे से भी गहरा है '
जिन्दापन ने कहा, ' आज तुम बहुत ही अच्छी लग रही हो'
मेरा नई ज़िंदगी में दाखिला ऐसा था कि मेरा वजूद फूल की तरह खिल गया। मेरा कण कण कली की तरह क्रियाशील हो गया।
मेरा शून्यता में मेरा खिलना और मेरे में अथाह प्यार का बहना, जीवन को भवसागर बना गया।
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Whether it is the journey of life or the journey of death - a person always travels alone.
Today I see that I am not alone even in death. In death my existence was awakened in such a way that in this pure loneliness of mine, the universe became a companion.
शुरू से ही मेरी यात्रा मौत की रही- जीवन की नहीं।
जीवन की यात्रा हो या मौत की यात्रा- व्यक्ति सदा ही अकेले में यात्रा करता है।
आज मैं देखती हूँ कि मैं मौत में भी अकेली नहीं हूँ। मौत में मेरा अस्तित्व ऐसे जाग उठा कि मेरे इस शुद्ध अकेलेपन में ब्रह्मण्ड साथी हो गया।
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मेरे ठहरें पलों में मेरा अनुभव मेरे को कैसे बड़ा और गहरा कर देता। जिस में से जीवन का रहस्य समझना आसान हो जाता है