Let's know today what is the secret of fasting?
What is the meaning of fasting?
What is the meaning of fasting?
Be it any custom, be it any ritual, or any tradition, whether worldly or religious; We do not have any understanding, only with the above understanding we move forward. That's why we never go anywhere. That's how we fast without understanding fasting?
If there is a policy of fasting in the policy of any religion - a very deep and a good result is hidden behind it - which we have not yet understood. First of all, let's talk about Islam today.
Because the deepest and most beautiful result and main purpose of fasting is in the Qur'an. Allah says in the Quran:
"Fasting is prescribed for you as it was prescribed for you, so that you may attain Taqwa (Allah-Consciousness)." (Quran, 2:183)
If we control and control our worldly needs, we gain the strength for the big fight: just as if we don't control our nafs, nafs controls us. (There are three types of nafs. First - existence; second - ego; third - soul. ,
Qur'an:
Just as we remember God at the time of hunger, similarly we remember God in the time of every sorrow, pain and sadness, similarly fasting is that while we are fasting, every hunger reminds us of God - this Fasting is our sacrifice that we spend a month in remembrance of God. This is a 'Hatha-yoga'. Constantly remembering God, staying in God, keeping our attention towards God, if we remain in the presence of God, then more awareness will come in us. Means that we increase our Taqwa. Taqwa means that our 'conscious-form' increases.
Just like we have to steal someone's thing, how we first look around to see if no one is watching, that means how we are full of consciousness. Just like how we are aware at the time of hunger, at the time of pain, to bring the same awareness in us, this 'fasting - this fasting' is a yoga, that means taqwa.
It is very stupid to consider fasting to be only hungry and thirsty.
The Prophet (sallallahu alayhi wa sallam) has said:
"Whoever does not make false speeches and does evil deeds, it is the decree of God that such a person need not give up food and drink." (Al-Bukhari)
The Prophet (sallallahu alayhi wa sallam) also warns us:
"Many people who fast get nothing but hunger and thirst, and many who pray at night get nothing but stay awake." (Dariami)
During the fast, the complete picture of 'Vrat' should be understood. Remember that fasting is not just about abstaining from food. This is a unique attempt to become a better person.
It is such an effort that for 11 months we live in the worldly dimension, and for one month we live in the spiritual dimension. We also have to know the soul. You also have to identify what is taqwa. Just as the rising sun, the air, and the setting sun leaves an impression of some or the other experience in us, in the same way Ramadan will also come and go, which will leave its mark on the sky of our heart and we will be successful sometime, when we are Taqwa' God- Consciousness will be attained. Just like 'Karva-chauth' - like every day's fast, like Monday, Maa Santoshi's. We give you one day to our beloved, you give to your trust.
If the soul of any person is filled with love - the one who loves everyone, then love itself becomes a vow - and the result is that the person reaches the spiritual dimension.
Then I see and understand that 'Vrat' is such a kriya yoga, which we give to our own faith, love, courage and happiness to God - whether the fast is for one day or one month.
Similarly, when I look at this changed time of today, there is no difference in the spirit of this ritual and in the spirit of God. The feeling is the same, be it worldly or spiritual - only the person will get the result - who will fulfill the ritual with a sincere heart. Like today's ritual - Mother's Day, Father's Day, Friendship Day, Love Day, Sister's Day, Teacher's Day - I do not see any difference between these two - Feeling for a seeing worldly There is a feeling for the second unseen world. For me both are same.
Now again it is my turn to think about my life today, so I ask myself, let's start madam and tell us what is your fasting?
My Fast:
My vow: I was at the age of 16, when I, lying on the bed, started looking up at the sky out of deep sadness. Out of the deep sobbing of my deep sadness, the restlessness of the tormenting agony, cried out as though there had been no sound.
It was my defeat from me, it was my dedicated condition, which had surrendered itself to God. This devotion of mine became my fast, which till date is engaged in fulfilling its role with honesty and justice and we are swimming in this ocean of life after seeing every feat of that devotion.
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चलो आज जाने कि उपवास का राज क्या है ?
उपवास का अर्थ क्या है? रोजा का अर्थ क्या है?
कोई भी रीत हो , रिवाज़ हो, कोई भी काण्ड हो या कोई भी परम्परा, चाहे संसारी हो या धार्मिक ; हम को कोई भी समझ नहीं, बस उपर की समझ के साथ ही हम आगे कदम बढ़तें हैं। इस लिए ही हम कभी कहीं भी पुहंचते नहीं। ऐसे ही हम उपवास को समझे बिना ही व्रत करतें हैं ?
अगर किसी भी धर्म की निति में व्रत की निति है- उस के पीछे बहुत ही गहरा और एक अच्छा परिणाम छुपा हुआ है - जिस की अभी हम को समझ नहीं आई। सब से पहले बात करती हूँ, आज इस्लाम धर्म की।
क्योंकि उपवास के प्रति सब से गहरा और उपवास का सुंदर परिणाम और मुख्य उद्देश्य क़ुरान में है। कुरान में अल्लाह कहतें है:
"उपवास आपके लिए निर्धारित है जैसा कि आपके लिए निर्धारित किया गया था, ताकि आप तक्वा (अल्लाह-चेतना) प्राप्त कर सकें।" (कुरान, 2:183)
अगर हम अपनी संसारी आवश्यकताओं को नियंत्रित और संयमित करके, हम बड़ी लड़ाई के लिए ताकत हासिल करते हैं: ठीक वैसे ही अगर हम अपनी नफ़्स को कण्ट्रोल नहीं करते तो नफ़्स हम को कण्ट्रोल कर लेती है। ( नफ़्स तीन प्रकार की होती है। पहला- वजूद; दूसरा- ईगो; तीसरा- आत्मा। ,
क़ुरान:
जैसे हम भूख के वक़्त खुदा को याद करतें हैं, ऐसे ही हम हर दुःख, दर्द और उदासी के वक़्त खुदा को याद करतें हैं, ठीक वैसे ही उपवास है कि हम ने उपवास करते समय, हर भूख हमें खुदा की याद दिलाती है - यह उपवास हमारा बलिदान होता है कि खुदा की याद में हम एक महीना बातीत करें। यह एक ' हठ -योग' है। लगातार खुदा को याद करना, खुदा में ही रहना, हमारा ध्यान खुदा की ओर ही लगा रहे , हम खुदा की उपस्थिति में ही रहेंगे तो हमारे में अधिक जागरूकता आएगी। मतलब कि हम अपनी Taqwa को बढ़ाते हैं तक़्वा का मतलब कि हमारा 'चेतन-स्वरूप बढ़ता है।
जैसे हम ने कोई किसी की चीज़ चुरानी होती है, कैसे हम पहले चारों तरफ देखतें हैं कि कोई देख तो नहीं रहा , मतलब कि हम कैसे होश से भरे हुए होतें हैं। जैसे भूख के वक़्त, दर्द के वक़्त कैसे हम जागरूक होतें हैं, वोही जागरूकता हमारे में लाने ले केलिए यह 'रोज़े - यह उपवास' एक योग हैं, मतलब कि तक्वा।
उपवास को सिर्फ भूखे- प्यासे ही रहना मान लेता बहुत बड़ी बेवकूफी है
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया है:
"जो कोई नकली भाषण और बुरे काम नहीं करता है, खुदा का फरमान है कि ऐसे व्यक्ति को खाने-पीने की चीजों को छोड़ने की जरूरत नहीं है।"(अल-बुखारी)
पैगंबर(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) भी हमें चेतावनी देते हैं:
"बहुत से लोग जो उपवास करते हैं उन्हें भूख और प्यास के अलावा कुछ भी नहीं मिलता है, और कई लोग जो रात में प्रार्थना करते हैं, उन्हें जागने के अलावा कुछ भी नहीं मिलता है।" (दारीमी)
व्रत के दौरान 'व्रत' की पूरी तस्वीर समझ लेनी चाहिए। याद रखें कि उपवास केवल भोजन से दूर रहने के बारे में नहीं है। यह एक बेहतर इंसान बनने का एक अनोखा प्रयास है।
यह एक ऐसा प्रयास है कि हम ११ महीने संसारी-आयाम रहतें हैं, और एक महीना हम आत्मिक-आयाम में रहतें है। हम ने आत्मा को भी जानना है। तक़्वा क्या होता है- इस की भी पहचान करनी है। जैसे उदय होता सूर्य एयर अस्त होता सूर्य हमारे में किसी न किसी अनुभव की छाप छोड़ता है, वैसे ही रमजान भी आएगा और जाएगा, जो हमारे दिल के आसमान पर अपनी छाप छोड़ेगा और हम कभी तो कामयाब होगें ही, जब हम तक़्वा 'गॉड-चेतना' को पा लेंगे। ऐसे ही जैसे करवा-चौथ ' है - जैसे हर दिनका व्रत है , जैसे सोमवार का, माँ संतोषी का। हम आपना एक दिन अपने प्यारे को देतें हैं, आपने भरोसे को देतें हैं।
अगर किसी भी व्यक्ति की रूह प्यार से भरी हुई है- जो सब को प्यार करती है तो प्यार खुद में ही व्रत बन जाता है - और वोही नतीजा निकलता है कि वो व्यक्ति आत्मिक-आयाम में पुहंच जाता है।
फिर मैं देखती हूँ और समझती हूँ कि 'व्रत' एक ऐसी किर्ययोग है, जो हम अपने खुद के भरोसा को , प्यार को , हिम्मत को और ख़ुशी को खुदा को देतें हैं - व्रत चाहे एक दिन का है या एक महीने का
ऐसे ही आज के इस बदले हुए वक़्त को देखती हूँ तो आज की यह जो रीत है, जो सब संसार की सांझी है, इस रीत की भावना में और खुदा की भावना में कोई फ़र्क़ नहीं। भावना एक ही है, संसारी हो या आध्यत्मिक हो - बस फल उस व्यक्ति को ही मिलेगा- जो सच्चे दिल से रीत को पूरा करेगा। जैसे आज की रीत है- मदर'स डे, फादर'स डे, फ्रेंडशिप डे, प्यार का दिन, सिस्टर'स डे , टीचर'स डे - इन दोनों में मेरे को कोई फ़र्क़ नहीं दिखाई देता - एक देखते संसारी के लिए भावना है- दूसरी अनदेखे संसार केलिए भावना है। मेरे लिए दोनों ही एक है।
अब फिर बारी आती है मेरे आज के जीवन की और सोच की, तो मैं खुद को ही सवाल करती हूँ, चलो मैडम हो जाओ शुरू और हम को बताओ कि आप का उपवास क्या है ?
मेरा उपवास:
मेरा व्रत: १६ साल की आयु थी, जब मैं बिस्तरे पर पड़ी ने बहुत गहरी उदासी में से आसमान की ओर देखना शुरू किया था। मेरी गहरी उदासी की गहरी सिसकी में से, तड़पती हुई तड़प की बेचैनी ने, ऐसी चीक मारी थी कि जिस की कोई आवाज़ हुई ही नहीं थी।
वो मेरी मेरे से ही हार थी, वो मेरी एक समर्पित दशा थी, जिस ने खुद को खुदा के हवाले कर दिया था। यह मेरा समर्पित भाव ही मेरा व्रत बन गया,जो आज तक खुद का रोल ईमानदारी और इन्साफ से पूर्ण करने में लगा हुआ है और हम उस समर्पित-भाव के हर कारनामे को देख कर जीवन के इस भवसागर में तैर रहें हैं।