First Part:
This tree is my Gurukul and today I too have to take the education of Sannyas from this Gurukul. I closely observe, understand and recognize every leaf of this tree. How this leaf, surrounded by sadness like me, is engaged in penance!
I asked the leaf what do you chant?
The leaf said, - 'We do not chant, we enjoy our falling color.'
I asked from the second leaf, who is your guru?
The leaf said, 'My birth had made me a guru.'
I asked from the third leaf, what religion do you belong to?
The leaf said, 'To be a leaf is my religion.'
Now I asked that why are you all wearing this Sanyasi color today?
So the tree replied, -
'Today and now I have given initiation to these leaves, it is my initiation that now the life of these leaves is successful, wherever these leaves go, they will always remain nectar; From today these leaves will walk on the path of freedom.
Second Part :
Today I again got free from those leaves, which were stuck in some nook of the ground, or were stuck in someone even after independence.
Freedom and then Slavery
My question took me closer to the leaves and my tongue was closed, but the leaves read my silence and said -
'Today we have to see our freedom, how deep it is. Our freedom will be deep only when we feel our freedom even in slavery, then only we will be able to make our next Sage journey.
My closed tongue silently bowed its head to the leaves.
Third Part:
Today I again saw some such leaves which were crushed to pieces due to winter and the water flowing through the street was carrying those leaves melting. I too started running with some flowing leaves and whatever I wanted to ask from the leaves, they started saying themselves.
Who is crushed?
- one who is arrogant
Let there be no element of pride in our energy, so we have to bring ourselves to a state of being crushed; Now this flowing water explains the movement of energy to us, we are now learning how to be anergic? It was our total dedication. After this, now we have to grow ourselves by becoming manure. Meaning that now when energy will be born again in us, we will see ourselves being born, this is what our samadhi means that now our journey of salvation will start.
---***---
Whenever the beauty of autumn enters my being as love, my gait becomes mystic
Love is the deepest and greatest force for self-confidence; The secret of the beauty of a falling leaf is that the tree has watered the leaf with great love.
Leaves and me
I see the leaves which are still on the top of the tree and their yellow-orange robes showing the glory of their renunciation or renunciation. These leaves, in their ocher colour, are beginning to make friends with my Sanyasi spirit. I felt that both myself and this leaf are in a state of renunciation.
When I saw myself in renunciation today, I only knew that 'I am complete, but my consciousness has not yet awakened'. This unconscious form of mine has taken the form of autumn so that it can wear a new color outside. Autumn came upon me and I continued to wear sanyaasi clothes. Because I knew that the spring flower is to bloom in my autumn.
Today the autumn threw my eyes towards me, then I saw that today autumn has grown into youth on my existence and the question arose; Then I gestured and asked the 'I' within me, -
"What is the secret of this new and new youth?"
I looked at the sky with such depth that the deep state of that depth was understood by me and only a smile blossomed in me.
A blooming smile gave me the same youth that autumn had given to my inner self.
---------------***-------***---------------
जब भी पतझड़ की खूबसूरती मेरे अस्तित्व में मोहब्बत बनकर समाती है तो मेरी चाल फकीरी हो जाती है
पत्ते और मैं
मैं देख रही हूँ उन पत्तों को, जो अभी भी पेड़ के ऊपर हैं और उनके पीले, नारंगी रंग के लिबास उनके त्याग या वैराग्य की महिमा का प्रदर्शित कर रहें हैं। यह पत्ते अपने गेरू-रंग में, मेरे सन्यासी भावना के साथ दोस्ती करने लगे हैं। मेरे को ऐसे लगा कि मैं और यह पत्ते दोनों ही वैराग्य की स्थिति में हैं।
जब मैंने खुद को आज वैराग्य में देखा तो मैंने यही जाना कि ' मैं तो पूरी हूँ, पर मेरी चेतना अभी जागी नहीं। मेरा यह अचेतन-रूप ही पतझड़ का रूप ले के आया है कि यह बाहार का नया रंग पहन सके। मेरे ऊपर पतझड़ आता ही गया और मैं सन्यासी कपडे पहनती ही रही। क्योंकि मैंने जान लिया था कि मेरी पतझड़ में ही बसंत का फूल खिलना है।
''इस नए और नए यौवन का राज क्या है?''
मैंने आसमान की तरफ ऐसी गहराई से देखा कि उस गहराई की गहरी दशा मेरे को भी समझा गई और मेरे में सिर्फ मुस्कराहट खिल गई।
खिलती मुस्कान ने मेरे को वही यौवन दिया, जो पतझड़ ने मेरे भीतर की 'मैं' को दिया था।
मेरा सन्यासी साथी
पहला हिस्सा:
यह पेड़ ही मेरा गुरुकुल है और मैंने भी आज संन्यास की शिक्षा इस गुरुकुल से लेनी है। इस पेड़ के हर पत्ते पत्ते को मैं करीब से देखती हूँ, समझती हूँ, और पहचानती हूँ। मेरे जैसी उदासी में घिरे यह पत्ते, कैसे तपस्या में सलग्न है!
मैंने पत्ते से पूछा कि आप किस का जाप करते हो?
पत्ता ने कहा,- 'जाप नहीं हम तो अपने झड़ते रंग का आनंद लेते हैं।'
मैंने दूसरे पत्ते से पुछा कि आप का गुरु कौन है?
पत्ते ने कहा,- 'मेरा पैदा होना ही मेरे को गुरु बना गया था।'
मैंने तीसरे पत्ते से पुछा कि आप किस धर्म के हो?
पत्ते ने कहा,- 'पत्ता होना ही मेरा धर्म है।'
अब मैंने सवाल किया कि फिर आज आप सब ने यह यह सन्यासी रंग क्यों पहना है ?
तो पेड़ ने जवाब दिया,-
'आज और अब मैंने इन पत्तों को दीक्षा दे दी है, यह मेरी दीक्षा है कि अब इन पत्तों का जीवन सफल है, यह पत्ते कहीं पर भी जाएंगे तो सदा अमृत ही रहेंगे; आज से यह पत्ते आज़ादी के मार्ग पर चलेंगे।'
दूसरा हिस्सा :
आज मैं फिर मिली आज़ाद हुए उन पत्तों से, जो आज़दी के बाद भी ज़मीन की किसी नुकर में फसे हुए थे, या किसी में अटके हुए थे।
आज़ादी और फिर गुलामी :
मेरा सवाल मेरे को पत्तों के करीब ले गया और मेरी जुबां बंद थी, पर पत्तों ने मेरी चुप को पढ़ लिया और कहा कि -
'आज हम ने अपनी आज़ादी को देखना है कि यह कितनी गहरी है। हमारी आज़ादी तब ही गहरी होगी जब हम गुलामी में भी खुद की आज़ादी को महसूस करेंगे, तो ही हम हमारी आगे की ऋषि यात्रा के काबिल बनेगे।'
मेरी बंद ज़ुबान ने चुप में ही पत्तों को सिर झुकाया।
तीसरा हिस्सा:
आज मैंने फिर से कुछ ऐसे पत्तों को देखा, जो सर्दी के कारण चूर चूर हो गए थे और गली में से बहता पानी उन पत्तों को गलाता हुआ ले जा रहा था। मैं भी कुछ बहते हुए पत्तों के साथ भागने लगी और पत्तों से जो पूछना चाहती थी, वो खुद ही कहने लगे।
चूर कौन होता है ?
- जो घमंडी होता है
हमारी ऊर्जा में कोई भी घमंड का तत्त रह न जाए, इस लिए खुद को चूर होने की स्थिति में लाना पड़ता है ; अब यह बहता हुआ पानी हम को ऊर्जा की गति को समझाता है, हम अब सीख रहें हैं कि हम ने एनेर्जिक कैसे होना है? यह हमारा पूर्ण रूप में समर्पण था। इस के बाद अब हम ने ही खाद बन कर खुद को उगाना है। मतलब कि अब जब हमारे में फिर से ऊर्जा पैदा होगी तो हम खुद को जन्मते देखेंगे, यही है फिर हमारी समाधि मतलब कि अब शुरू होगी हमारी मोक्ष की यात्रा।