Life itself is enlightened
Let us find out today that what is such a thing, in this world which is not enlightened? And who is not in its own nature and who is not full of self-realization?
Now look at that-
See the sunlight on the mountains?
Feel the touch of cool air?
See that the season of spring and the season of autumn; Doesn't it make you feel quite clear that we are all already knowledgeable?
Who hasn't already been enlightened?
Everything is already virtuous and powerful.
Now look like this -
"When I heard the bell ringing, there was no 'me' before I heard that, so there was no bell for me again. But the bell was still ringing."
Look at that-
"Look at the flowing water, the water that used to flow, which still flows and will continue to flow; The sound of water flowing would also make the tone of the music, but there was no one to hear or see. When I saw the water and heard the sound of flowing water, I knew, but even before I could see and hear it, the water was in its own good nature. ''
Whenever we experience any thought, feeling, experience, direction, condition, situation, and any other part of anything at once, there is no duplicity in that experience, nor is there any It's double! Life has no one inside and no one outside; It is neither an object nor an object, it is only a consciousness, only an immediate awareness. This immediate awareness is self-realization.
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जीवन खुद में ही प्रबुद्ध है
चलो आज हम खोजें कि क्या है ऐसी चीज़, इस संसार में जो प्रबुद्ध नहीं है ? और जो खुद के स्वभाव में नहीं है और जो आत्म-बोध से भरपूर नहीं है ?
अब वो देखो -
पहाड़ों पर सूरज की रोशनी देखें?
ठंडी ठंडी हवा का स्पर्श महसूस करो?
वो देखो बहार का मौसम और पतझड़ की ऋतू ; क्या यह आप को बिल्कुल स्पष्ट महसूस नहीं करवाती कि हम सब पहले से ही ज्ञानवान हैं ?
कौन पहले से ही प्रबुद्ध नहीं है?
सब कुछ पहले से ही गुणवान और बलशाली है।
अब देखो ऐसे कि -
"जब मैंने घंटी बजने की आवाज़ सुनी, उस सुनने से पहले तो 'मैं' नहीं थी, सो मेरे लिए घंटी भी फिर नहीं थी। पर घंटी बज तो रही ही थी।''
वो देखो -
'' बहते हुए पानी को देखो, पानी जो बहता ही जा रहा था, जो अब भी बहता है और बहता ही रहेगा ; पानी के बहने की आवाज़ भी संगीत की टोन बनाती ही जायेगी, पर सुनने वाला और देखने वाला कोई नहीं था। जब मैंने पानी को देखा और बहने की आवाज़ सुनी तो मैंने जाना, पर वो तो मेरे देखने और सुनने से पहले ही पानी तो खुद के स्वभाव में गुणवान ही था। ''
जब भी हम किसी भी सोच को , भावना को, अनुभव को, दिशा को, दशा को, हालात को, और किसी भी चीज़ को और हिस्से को तत्काल अनुभव करतें हैं तो उस अनुभव में कोई भी दोहरापन नहीं होता और ना ही उस में कोई द्विगुण है! उस का ना ही कोई भीतर और ना ही कोई बाहर होता है ; वो न ही कोई विषय और न ही कोई वस्तु होता है , सिर्फ एक होश होता है,केवल तत्काल जागरूकता होती है। यह तत्काल जागरूकता ही आत्मबोधता होती है