The story of the mysterious questions:
What if today I come to know that life till date is a false belief, my question takes me on a long journey
Traveling in search of one's true form seems like a very risky job, just like we tell someone to go into a state of deep meditation. Just as people are afraid of silence, of death, of fear, of disease, in the same way a deep panic will be born here, when the question will come in anyone like me that :-
- What will be left when all the concepts are exhausted?
- Who shall we be?
- How will we see the world?
- What kind of feelings will we have?
- How will we see other people?
- What happens after Nirvana?
- What is beyond the universe?
- What will be the last step of all this life?
When this world has to end, what is the benefit of it happening again today?
Is there some other purpose of our life, which no one has come to know till now?
Not all of us know the real to the real, nor do we really know the real reality today, and until we do, there's no way to find out.
Till today every thought, every thought, every belief, every step, every moment, every situation, every situation, if everything proves to be wrong, then I doubt even the sages and mystics, then I surround them all in questions , because my living, my deepest existence wants to be aware of the reality of the universe, and wants to live it before I die.
Then the question comes to me:
- If today Buddha comes and says that emptiness is not the last step, there is still a lot ahead of him, then?
- If today Krishna says that I did not say the Gita, Arjun had said it, I have got self-realization from Arjuna, then?
- If Jesus says that this is the Bible, I wrote a story, then that story has become a super-hit?
- Or do we find out today that Moses had never spoken to God in the bush on the hill, then?
- If it is also known that Balmik had written a story called Ramayana, then?
- If someone comes today and says that 'I' (anyone) was in Israel at the time of Muhammad, and I had seen Hazrat Muhammad, and I met him and gave me a book by Hazrat Muhammad and said that this The book is very good, it has been given to me by a very noble fakir, you should take this book to the right place, this book is for the good of the world, so?
We have never seen anyone, till today we have read or heard everything and we have trusted. What if all our trust turns out to be wrong today?
If we assume that all this is true but we see that every day everything changes, thinking changes, relationships change, customs change, fashion changes, time changes, then maybe the reality of life also changes. You go, then?
Let's say religious books have not changed and they are true but things have changed. It may be that reality does not remain constant and then that reality also changes its nature and structure, then?
= How do we know it isn't?
= Who says things don't change?
= Who says that what Buddha said then must still be true?
Do we have any evidence that this should be the case?
It is not easy to give up your trust. Standing completely on your own is not easy. Forgetting everything and standing upright in yourself, and then finding out what is the truth?, is there God or not? what we are? And what is our reality? What is liberation? What is freedom? What is the real reality?
It takes a lot of deep and deep courage to know these questions.
Because we have to be free from all concepts, all yogas, all religions, all customs, all thoughts. Then, when we are just us, then a journey begins. In this journey again, the policy of 'we' that falls on us, then we are not even there, only are there. It has to be our being in itself, neither less nor more - it just remains to be. It is real we, who are pure and beautiful like nature, from here again a journey begins, which is a journey even if not a journey; What is searched is not searched; That which is only – that which is creation in itself.
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अगर आज मेरे को पता चले कि आज तक का जीवन एक झूठा भरोसा है तो क्या होगा,
यह मेरा सवाल मेरे को लम्बी यात्रा पर ले जाता है
रहस्यमई सवालों की कहानी
खुद के असली रूप की खोज में यात्रा करनी बहुत ही जोखिम वाला काम लगता है, ठीक वैसे ही जैसे हम किसी को कह देतें हैं कि आप गहरी ध्याना की अवस्था में जाओ। जैसे लोग चुप से, मौत से, डर से , रोग से घहबरातें हैं ठीक वैसे ही एक गहरी घहबराहट यहाँ पर जन्म लेगी, जब किसी में भी मेरी तरह ही यह सवाल आएंगे कि :-
- जब सभी अवधारणाएँ समाप्त हो जाएँगी तो क्या बचेगा?
- हम कौन होंगे?
- हम दुनिया को कैसे देखेंगे?
- हमारे पास किस तरह की भावनाएँ होंगी?
- हम अन्य लोगों को कैसे देखेंगे?
- निर्वाना के बाद क्या होता है?
- ब्रह्माण्ड के पार से पार क्या है?
- इस तमाम जीवन का आखरी कदम क्या होगा?
- इस सृष्टि ने जब खत्म हो ही जाना है तो आज इस के फिर होने का फाइदा है ?
- क्या हमारे जीवन का कोई ओर तो मक़सद नहीं है, जिस का अभी तक किसी को पता ही न चला हो?
हम सब असली से असली वास्तव को नहीं जानते और ना ही आज और अभी तीक सच में ही असली असलियत को जानते हैं और जब तक हम ऐसा नहीं करते तब तक पता लगाने का कोई तरीका है भी नहीं है।
आज तक का हर विचार, हर सोच, हर भरोसा, हर कदम, हर पल, हर हालात, हर स्थिति, सब गलत साबित हुई तो मेरे में ऋषि , फकीरों पर भी शक होता है, तो मैं उन सब को भी सवालों में घेरती हूँ , क्योंकि मेरा जीना, मेरा गहरे से गहरा वजूद ब्रह्माण्ड की असलियत से वाकिफ होना चाहता है, और उस को मरने से पहले जीना चाहता है।
फिर मेरे में सवाल यह आता है कि:
- अगर आज बुद्धा आ के यह कह दे कि शून्यता आखरी कदम नहीं है, उस के आगे ओर भी अभी बहुत कुछ है,तो?
- अगर आज कृष्णा कह दे कि गीता मैंने नहीं कही थी, अर्जुन ने कही थी, मेरे को आतम-बोध अर्जुन से मिला है , तो ?
- अगर जीसस कहे कि यह जो बाइबिल है, यह मैंने एक कहानी लिखी थी, वो कहानी ही सुपर-हिट हुई है तो ?
- या फिर आज हम को पता चले कि मूसा ने पहाड़ी पर झाड़ी में परमेश्वर से कभी बात ही नहीं की थी, तो ?
- अगर यह भी पता चले कि बाल्मीक ने रामायण नाम की एक कहानी लिखी थी, तो?
- अगर आज कोई आ के कहे कि हज़रत मुहम्मद के वक़्त 'मैं' ( कोई भी ) इस्राल में था, और मैंने हज़रत मुहम्मद को देखा था, और मैं उन से मिला था और मेरे को एक किताब हज़रत मुहम्मद ने दी और कहा कि यह किताब बहुत ही अच्छी है, मेरे को एक बहुत ही नेक फ़क़ीर ने दी है , यह किताब को आप सही जगह पर पुहंचा देना, यह किताब संसार की भलाई केलिए है, तो?
- हम ने कभी भी किसी को देखा ही नहीं, आज तक हम ने सब कुछ पढ़ा है या सुना है और हम ने भरोसा किया है। अगर आज हमारा सब भरोसा गलत हो जाए तो ?
- अगर मान लो कि यह सब कुछ सच ही है पर हम देखतें हैं कि हर रोज़ सब कुछ बदलता है, सोच बदलती है, रिश्ते बदलते हैं, रिवाज़ बदलते हैं, फैशन बदलता है, वक़्त बदलता है, तो शयद जीवन की असलियत भी बदल जाती हो, तो ?
- मान लो कि धार्मिक किताबें न बदली हो और वो सच हों लेकिन चीजें बदल गईं। हो सकता है कि वास्तविकता स्थिर न रहती हो और फिर वो असलियत अपनी प्रकृति और संरचना को भी बदल लेती हो, तो?
= हम कैसे जानते हैं कि ऐसा नहीं है?
= कौन कहता है कि चीजें नहीं बदलतीं?
= कौन कहता है कि बुद्ध ने तब जो कहा, वो अब भी सच होना चाहिए?
क्या हमारे पास कोई सबूत है कि ऐसा ही होना चाहिए?
अपने भरोसों को त्यागना आसान नहीं है। पूरी तरह से अपने आप पर खड़ा होना आसान नहीं है। सब कुछ भूल जाना और सीधे खुद में खड़े हो जाना, और फिर पता लगाना कि सच क्या है?, क्या खुदा है भी या नहीं? हम क्या हैं? और हमारी वास्तविकता क्या है? मुक्ति क्या है? आज़ादी क्या है ?असली असलियत क्या है?
इन सवालों को जानने केलिए बहुत बड़े और गहरे हौसले की ज़रुरत होती है।
क्योंकि हम को सभी अवधारणाओं, सभी योगों, सभी धर्मो से, सभी रिवाज़ों से , सभी विचारों से मुक्त होना पड़ेगा। फिर, जब हम सिर्फ हम रह जाते हैं, फिर एक यात्रा शुरू होती है। इस यात्रा में फिर हमारे ऊपर से 'हम' की जो निति होती है, वो गिरती है तब हम भी नहीं होते, सिर्फ होतें हैं। यह हमारा होना खुद में होना होता है, ना ही कम और न ही ज़्यादा - बस सिर्फ होना रह जाता है। यह वास्तविक हैं हम, जो प्रकृति की तरह शुद्ध और सुंदर हैं, यहाँ से फिर एक यात्रा शुरू होती है, जो यात्रा हो के भी यात्रा नहीं; जो खोज हो के भी खोज नहीं; जो सिर्फ होती है- जो खुद में ही स्रष्टि होती है।