4 Step Biography
1- I don't know which hand it was that knocked on the door of my sleep and woke me up so that I could enjoy this fresh morning where we learn the true meaning of leading our lives...
2- I don't know what was that moment that dominated all the 'moments' of my life and made a new era for me...
3- I don't know what was my step, which became my Parikarma ( The circumambulation of a sacred place) and started teaching me the lesson of perfection.
4- I don't know what was that breath, in which was the statement of my life printed on the emptiness of the atmosphere, in which was the key to my self-field...
The experience of one's awareness is so full of mystery, when the experience is mysterious again, it fills life with a smile.
Then I saw my building (life) collapsing, the building I had erected with the little bricks of my actions; Which had been standing inside me for ages, which was now starting to crumble, which people used to know and come to see in the name of 'old historical building'. I was living suffocatingly in that building, and people used to decorate, decorate and beautify the building.
Fokey laughter in that building used to tear me down; Wrong interests made life difficult; False trust used to rob me during the day, because the guard of this building was my only false desire, which ended today and when I have become holy today, I saw that today the crowd of people has also reduced.
४ कदम की जीवनी
व्यक्ति की जागरूकता का अनुभव बहुत ही रहस्य से भरा है, जब अनुभव फिर से रहस्यमय हो के मुस्कान से जीवन को भर देते हैं
1- मुझे नहीं पता कि वह कौन सा हाथ था जिसने मेरी नींद के दरवाजे पर दस्तक दी और मुझे जगाया ताकि मैं इस ताजा सुबह का आनंद ले सकूं जहां हम अपने जीवन का नेतृत्व करने का सही अर्थ सीखते हैं ...
2- पता नहीं वो कौन सा लम्हा था जो मेरे जीवन के सभी 'पलों' पर हावी हो गया और मेरे लिए नए युग का शुभ महूर्त कर दिया ...3- पता ही नहीं वो मेरा कौन सा कदम था, जो मेरी परिकर्मा बन कर मेरे को सम्पूर्णता की सीख देने लगी
4- पता ही नहीं वो कौन सी सांस थी, जिस में वायु-मंडल के खालीपन पर छपे मेरे जीवन का वो ब्यान था, जिस में मेरे आत्म-क्षेत्रा की कुंजी थी...
फिर मैंने मेरी उस ईमारत ( जीवन) को ढहते देखा, जिस ईमारत को मैंने अपने कर्मों की छोटी-छोटी ईंटों से खड़ा किया था; जो मेरे ही भीतर युगो से बनी खड़ी थी, जो अब खड़र होने लगी थी, जिस को लोग 'पुरानी इतिहासक इमारत' के नाम पर जानते थे और देखने आते थे। मैं उस इमारत में घुटन से जी रही थी, और लोग उस ईमारत को सजाते थे, सवांरते थे और सुंदर बनाते थे।
उस इमारत में फोकी हंसी मेरे को आंसू देती थी; गलत रूचि जीने को दुश्वार बनाती थी; झूठे भरोसे मेरे को दिन में ही लूट लेते थे, क्योंकि मेरी इस ईमारत का पहरेदार मेरी ही झूठी चाहना थी, जो आज ख़तम हो गई और जब आज मैं पवित्र हुई हूँ तो मैंने देखा कि आज लोगों की भीड़ भी कम हो गई।