Do you know that thinking becomes a picture?
When I first saw my own thinking becoming a picture, how I was thinking and as I was going to sleep, the same way of thinking was becoming a picture. Then I saw that life taught me to get out of sleep. I started to feel that moment of waking and sleeping, from which I can see that I have thinking on one side, and I saw the mind going into sleep, then how the thinking becomes a picture on the floor of sleep. That means I was watching the body go to death
When we know how our thinking takes the shape of a picture, we know that our attendance is not absent
Karma region starts when thoughts wake up
I learned that Karma is related to the idea. Just as thoughts happen, so are deeds. The form of Karma is visible above the form of thought. Thoughts take the form of Karma. Karma stops only when thoughts stop. Just like in deep sleep, we see that no sinner can sin and no servant can even serve. Because Karma starts only when the thoughts are aware
When do we succeed in meditation?
We will always be successful in meditation only when we bind ourselves with a strong intention. Meditation will go only there when dhyam finds the best and deepest path to become active. Meditation is the nature of the mind. And everything is complete in its own nature. And the completion is the complete attainment of the journey. Meditation is the process with which the mind is able to complete itself, meaning that our mind fulfills its own merit and this complete success of the mind becomes the mind's elimination. After this, the mind becomes the companion of the person and takes the person into the spiritual dimension.
How do we concentrate the mind?
The mind is the flow of our thoughts, if it stops then it will calm down and the mind will regain its full state. The mind gets concentration when the mind finds a motive. A challenge comes in front of the mind, after which the mind completes itself, meaning that it understands its own merit. The attention of the mind is now engaged in the purpose, due to which the mind gets out of wasteful thinking. It is worth remembering that the mind also serves a purpose. The nature of the mind is meditation. When it goes through the flow of thoughts, it cannot make a decision, every thought is its own child, here, the mind supports the intellect, when the intellect adopts any one idea and Makes it a motive. When any such purpose comes in front of the mind, then the quality of concentration is created in the mind for that purpose.
क्या आपको पता है कि सोच ही तस्वीर बन जाती है ?
जब मैंने पहली बार खुद की सोच को तस्वीर बनते देखा था कि कैसे मेरे में सोच चल रही है और जैसे मैं नींद में जा रही हूँ, वैसे ही सोच का हर लफ्ज़ तस्वीर बनता जा रहा है। फिर होले होले मैंने देखा कि ज़िंदगी ने मुझ को नींद में से बाहर निकलना सीखा दिया। जागने और सोने के उस बारीक़ पल को अनुभव करने लगी, जिस में से मैं देख सकती हूँ कि मेरी एक तरफ सोच है, और मैं मन को नींद में जाते देखा , तब सोच नींद के तल पर कैसे तस्वीर बनती जाती है। मतलब कि मौत में जाते शरीर को मैं देख रही थी
जब विचार जागते हैं तो कर्मा क्षेत्र शुरू होता है
मैंने जाना कि कर्मा का सम्बन्ध विचार के साथ है। जैसे विचार होतें हैं , ठीक वैसे ही कर्म होतें हैं। विचार के रूप ऊपर ही कर्मा का रूप दिखाई देता है। विचार ही कर्मा का रूप धारण करतें हैं। विचार बंद हो जाने पर ही कर्म बंद हो जातें हैं। जैसे गहरी नींद में ही हम देखतें हैं कि कोई पापी पाप नहीं कर सकता और कोई भी सेवक सेवा भी नहीं कर सकता . क्योंकि जब विचार जागतें हैं, तब ही कर्मा शुरू होतें हैं
जब हम यह जान लेते हैं कि हमारी सोच तस्वीर का रूप कैसे लेती है तो हम जान लेते हैं कि हमारी हाज़री गैरहाजरी नहीं होती
हम ध्यान में सफल कब होतें हैं?
हम सदा ध्यान में उस वक़्त ही सफल होंगे, जब हम खुद को पक्के इरादे से किसी मक़सद में बाँध लेते हैं। ध्यान वहीँ पर जाएगा, जब ध्याम को सकिर्या होने के लिए उत्तम और गहरा मार्ग मिल जाता है। ध्यान मन का स्वभाव है। और हर चीज़ खुद के स्वभाव में पूर्ण है। और सम्पूर्ण होना ही यात्रा की पूर्ण प्राप्ति है। ध्यान वो प्रकिर्या है,जिस के साथ मन खुद को पूर्ण कर पाता है , मतलब कि हमारा मन खुद की योग्यता को पूरा कर देता है और मन की यह पूर्ण सफलता ही मन का निर्वाना बन जाती है। इस के बाद मन व्यक्ति का साथी बन कर व्यक्ति को आत्मिक- आयाम में ले जाता है।
हम मन को एकाग्र कैसे करें?
मन हमारे विचारों का प्रवाह है अगर यह रुक गया तो यह मन शांत हो जाएगा और मन पूर्ण अवस्था को प्राप्त कर लेगा। मन को एकाग्रता तब मिलती है , जब मन को एक मकसद मिल जाता है। मन के आगे एक चनौती आ जाती है, जिस को प् कर मन खुद को पूर्ण कर लेता है, मतलब कि खुद की योग्यता को समझ लेता है। मन का ध्यान अब मकसद में लगा हुआ होता है, जिस के कारण मन फालतू की सोच से बाहर हो जाता है। यह याद रखने के काबिल बात है कि मन भी कोई मकसद की भाल करता है। मन का स्वभाव है ध्यान।जब वो विचारों के बहा में से गुज़रता है तो वो फइसला नहीं कर सकता खोंखी हर विचार उस का ही बच्चा होता है, यहां पर मन का साथ बुद्धि देती है, जब बुद्धि किसी एक विचार को अपना लेती है और उस को मकसद बना लेती है। जब ऐसा कोई मकसद मन के आगे आता है तो मन में उस मकसद केलिए एकाग्रता का गुण पैदा हो जाता है।