Where does deception originate?
On trust.
Why?
Deception requires a certain place to be born, and with confidence the deception will not find a place anywhere else.
Why is this ?
Trust is a delicate feeling, whose land is very sacred. The depth of trust will always be available to us only through 'Deception'.
Why?
Because:
Like if we have to build a wall and if we cannot always put the brick in the same way, then the wall will never be built. In the same way, how sure is the root of trust, it is always made out of negative feelings.
The common man's trust is broken every day, but he sees, does nothing. Our eyes go only when our deep trust strikes. Trust will always be looted. There are two aspects to everything, the weak aspect of trust is that it can be easily looted and the powerful aspect of it is that it gives the person success.
So how can we save?
Trust is our quality, to save trust, we have to make trust deeper and stronger. Trust is always powerful by deception. No matter how much we love someone, always hide that thing, that thought, that experience and that wealth in your heart, which you never want to lose. If you cannot hide your own experience, then no one will ever do the work for you, which you could not do for yourself.
Another way to avoid deception is to surrender yourself to life or become very conscious. Both ways make a person powerful.
Cheating can always cheat trust. Only if you have to target trust, then a person can be cheated, we can cash fear only on the ground of trust.
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धोखे का जन्म कहाँ पर होता है ?
भरोसे पे।
क्यों?
धोखे को पैदा होने केलिए पक्की जगह चाहिए, और भरोसे से पक्की जगह धोखे को ओर कहीं पर भी नहीं मिलेगी।
ऐसा क्यों है ?
भरोसा एक नाज़ुक अहसास है , जिस की ज़मीन बहुत ही पवित्र है। भरोसे की गहराई की जानकारी सदा ही हम को 'धोखे ' के राहीं ही मिलेगी।
क्यों ?
क्योंकि:
जैसे हम ने एक दिवार बनानी है और ईंट को सदा ही एक जैसा नहीं लगा सकते तो दिवार कभी नहीं बनेगी। वैसे ही भरोसे की जड़ कितनी पक्की है सदा नाकारत्मिक -भाव में से ही बनती है।
आम इंसान का हर रोज़ विश्वास टूटता ही है , पर वो देखता है, करता कुछ नहीं। नज़र हमारी वहीँ पर जाती है, जब हमारे गहरे भरोसे पर वार होता है। भरोसे को ही सदा लूटा जाएगा। हर चीज़ के दो पहलु हैं, भरोसे का कमज़ोर पहलु यही है कि इस को आसानी से लूटा जा सकता है और इस का ताकतवर पहलु यही है कि यह व्यक्ति को कामयाबी की मंज़िल देता है।
तो हम बचा कैसे कर सकतें हैं ?
भरोसा हमारा गुण है, भरोसे को बचाने के लिए हम ने भरोसे को गहरा और ताकतवर बनाना है। भरोसा सदा धोखे से ही ताकतवर होता है। हम को किसी से कितना भी प्यार क्यों न हो, सदा उस चीज़ को , उस सोच को, उस अनुभव को और उस दौलत को दिल में छुपा लेना, जिस को आप कभी भी खोना नहीं चाहते। अगर आप ही खुद के अनुभव को छुपा न सके तो कोई भी आप केलिए वो काम कभी नहीं करेगा, जो आप खुद के लिए नहीं कर पाए।
धोखे से बचने का एक और राह है , खुद के जीवन को समर्पित कर देना या बहुत ही होशमंद हो जाना। दोनों ही राह व्यक्ति को शक्तिशाली बना देती है।
धोखा सदा ही भरोसे को ठग सकता है। भरोसे पर ही निशाना लगाना पड़ेगा, तो ही व्यक्ति को धोखा दिया जा सकता है , डर को cash भी हम भरोसे की ज़मीन पर ही कर सकतें हैं।