The Action of Conscious
All the deepest feelings are of consciousness, how? Whenever we are close to consciousness, then the qualities of consciousness come in us.
Which chemical chemical in love is what makes our condition childish and makes the state a child? Love is the action of consciousness. That which is our consciousness, conscious, our awareness, light is just its aura, consciousness is like space, which is, but is not visible. When we go into our conscious form for the first time, our condition is such that if we want to express it, we will not be able to do it. When we are unable to describe our own condition, then how can we give a feeling of consciousness? As much as it is overlooked, it is lovely. Can we see sleep? Can we see the thinking? Can we see the experience? No, we can only see the action of these, meaning that till date we are aware of their shadow only. Now the question arises, if I want to see all these, then? Answer; I have to be thinking. How can I become thinking? I have to forget my 'being' to become thinking. There is only one real way to forget 'being', that is, we can see what we want to be on the ground of 'silent' quiet. To become conscious, we have to forget the quiet, only to remain conscious. Love is Conscious's character. Right now we only play with faded 'shadow'.
चेतना की किर्या
जितने भी गहरे एहसास है वो सब चेतना के हैं, कैसे? जितने भी हम चेतना के नज़दीक होते हैं, तो चेतना के गुण हमारे में आते हैं।
प्यार में ऐसा कौन सा रासायिनक-तत्त है, जो हमारी स्थिति को बचपन बना देता है और अवस्था को बच्चा बना देता है ? प्यार चेतना की किर्या है। जो हमारी चेतना है, होशमंदी है , हमारी जगरूकता है, रौशनी सिर्फ उस की आभा है, चेतना स्पेस की तरह है, जो है, पर दिखाई नहीं देती। जब हम पहली बार हमारे चेतन-रूप में जाते हैं तो हमारी हालत ऐसी होती है, जिस को हम ब्यान भी करना चाहेंगे तो कर नहीं पाएंगे। जब हम खुद की हालत को ही ब्यान करने में असमर्थ हैं तो चेतना को कैसे लफ्ज़ दे सकतें हैं ? जितना अनदेखा है, उतना ही प्यारा है। क्या हम नींद को देख पातें हैं? क्या हम सोच को देख पातें हैं? क्या हम अनुभव को देख सकतें हैं? नहीं, हम इन का सिर्फ action ही देख सकते हैं, मतलब कि आज तक हम सिर्फ इन की परछाईं से ही वाकिफ हैं। अब सवाल यह उठता है तो अगर मैंने इन सब को देखना हो, तो ? जवाब; मुझ को सोच ही बनना पड़ेगा। सोच मैं कैसे बन सकती हूँ? सोच बन जाने केलिए मुझ को मेरे 'होने' को भूलना पड़ेगा। 'होने' को भूलने के लिए एक ही असली मार्ग है, वो है 'चुप' चुप की ज़मीन पर हम जो होना चाहते हैं, उस को हम देख सकते हैं। चेतन होने के लिए हम ने चुप को भी भूल जाना है , सिर्फ चेतन ही रह जाना है। प्यार चेतन की किर्या है। अभी हम सिर्फ फीकी 'fade' सी परछाईं के साथ ही खेलते हैं।
प्यार में ऐसा कौन सा रासायिनक-तत्त है, जो हमारी स्थिति को बचपन बना देता है और अवस्था को बच्चा बना देता है ? प्यार चेतना की किर्या है। जो हमारी चेतना है, होशमंदी है , हमारी जगरूकता है, रौशनी सिर्फ उस की आभा है, चेतना स्पेस की तरह है, जो है, पर दिखाई नहीं देती। जब हम पहली बार हमारे चेतन-रूप में जाते हैं तो हमारी हालत ऐसी होती है, जिस को हम ब्यान भी करना चाहेंगे तो कर नहीं पाएंगे। जब हम खुद की हालत को ही ब्यान करने में असमर्थ हैं तो चेतना को कैसे लफ्ज़ दे सकतें हैं ? जितना अनदेखा है, उतना ही प्यारा है। क्या हम नींद को देख पातें हैं? क्या हम सोच को देख पातें हैं? क्या हम अनुभव को देख सकतें हैं? नहीं, हम इन का सिर्फ action ही देख सकते हैं, मतलब कि आज तक हम सिर्फ इन की परछाईं से ही वाकिफ हैं। अब सवाल यह उठता है तो अगर मैंने इन सब को देखना हो, तो ? जवाब; मुझ को सोच ही बनना पड़ेगा। सोच मैं कैसे बन सकती हूँ? सोच बन जाने केलिए मुझ को मेरे 'होने' को भूलना पड़ेगा। 'होने' को भूलने के लिए एक ही असली मार्ग है, वो है 'चुप' चुप की ज़मीन पर हम जो होना चाहते हैं, उस को हम देख सकते हैं। चेतन होने के लिए हम ने चुप को भी भूल जाना है , सिर्फ चेतन ही रह जाना है। प्यार चेतन की किर्या है। अभी हम सिर्फ फीकी 'fade' सी परछाईं के साथ ही खेलते हैं।