I share my life journey with universe
how I saw life and how life understood me.
O Universe,
How are you!
Today I remembered you very much, because now I want your refuge.
O Universe, ahead of you: First of all I thank myself, because:
My first thought was that I wanted to see God and I believed in the existence of God without any hesitation, and then I thought about the mystery of his nature and sacrificed my own life in the name of God. I kept searching for God and struggled and gave away 32 years of life and finally found that I was covering my own thoughts. I realized that what I thought was my discovery. No. My search was not there, it was the shedding of my karma, which started flowing backwards. What I did through births, through which my temperament and habits started to develop, then due to which pride was born in me. When I was afflicted by my own activities, all my actions became free and I just kept getting empty. When I saw the emptiness of myself, I was surprised that the surprise I had when I found myself in an unknown country. Now that I have seen that what I am looking for is not me, I had died long ago - the moment I was overwhelmed with pride. What I see in the last today is my soul, and no one else's.
My soul, my existence, which is like a darkness, whose nature is like silent, whose action is like light, whose thinking is like discovery, whose feeling is like unity.
So first of all, I thank you for the thought of me, who wanted God. Then thank you, that darkness, because of which my journey was lighted. And now that my deeds became a veil for me, now waiting for their own freedom, then patiently waiting for me, which I never thought was good for these thoughts, because these thoughts gave me an imprisonment. I did not know that this was a reflection of my own ability. Today I got freed from my own ability, not from any thoughts and feelings.
The nature of this freedom that took me in the same dimension, it is my light, that is my consciousness. When I entered this dimension, my limitlessness first remembered you. Because only you can understand my existence today, and no one has found me.
Because whatever I see, I am the one, so what was it that I did till date?
World: If the world is the name of my ability, then what am I?
If my existence is huge then what is God?
Whose thought, whose pursuit was I living?
O universe, from today I am in your refuge, from today my journey starts from yours, today I want your direction, fulfill this demand of mine.
Thanks with bowed head
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खुद की जीवन यात्रा को ब्रह्मण्ड के साथ सांझी करती हूँ
कि मैंने ज़िंदगी को कैसे देखा और ज़िंदगी ने मेरे को कैसे समझया।
ऐ ब्रह्मण्ड,
कैसा हो आप !
आज मुझ को तेरी बहुत याद आई ,क्योंकिअब मुझ को तेरी शरण चाहिए।
ऐ ब्रह्माण्ड तेरे आगे : सब से पहले खुद को धन्यबाद करती हूँ, क्योंकि:-
मेरी पहली सोच यही थी कि मैंने खुदा को देखना है और मैंने खुदा के अस्तित्व में बिना किसी झिझक के विश्वास किया, और फिर मैंने उसके स्वभाव के रहस्य के बारे में सोचा और खुद का जीवन खुदा के नाम पर ही क़ुर्बान कर दिया। मैं खुदा की खोज में लगी रही और संघर्षरत होकर जीवन के ३२ साल निकाल दिए और आखिर में पाया कि मैं खुद ही अपनी सोच पर आवरण था। मैंने महसूस किया कि मुझ में वह जो सोच थी, वो मेरी खोज थी। नहीं। मेरी खोज भी नहीं थी, वो तो मेरेही कर्म का बहा था, जो पीछे की ओर बहने लगा था। जो मैंने जन्मों से किर्या-काण्ड किये, जिन से मेरा स्वभाव और आदतें बनती चली गई, फिर जिन के कारण मेरे में घमंड पैदा हो गया।खुद की ही की हुई हरकतों से जब मेरा सहमना हुआ तो मेरी सब हरकतें मुक्त होती चली गई और मैं खाली ही होती चली गई। जब मैंने खुद के खालीपन को देखा तो मुझमें वह आश्चर्य हुआ, जो आश्चर्या मुझे उस वक़्त हुआ था, जब मैंने खुद को अनजाने मुल्क में पाया था । अब जब मैंने यह देखा कि जिस की तलाश मैं कर रही हूँ, वो मैं है ही नहीं, मेरी मौत बहुत पहले हो चुकी थी - जिस पल मेरा सहमना घमंड के साथ हुआ था। आज जो मैं आखिरी में देख रही हूँ, वो मेरी ही आत्मा है, और कोई नहीं।
मेरी आत्मा, मेरा वजूद, जो एक अँधेरे की तरह है, जिस का स्वभाव चुप की तरह है, जिस का कर्म रौशनी की तरह है, जिस की सोच खोज की तरह है, जिस की भावना एकता की तरह है।
सो सब से पहले मैं धन्यबाद करती हूँ, मेरी उस सोच का- जिस ने खुदा को चाहा। फिर धन्यबाद करती हूँ, उस अंधेरे का, जिस के कारण मेरी यात्रा रौशनी की हुई। और अब यह जो मेरे कर्म मेरे लिए घूंघट बने, जो अब खुद की आज़ादी के लिए, फिर सब्र से मेरा ही इंतज़ार करते रहे, जिन को मैंने कभी अच्छा नहीं समझा था, क्यूंकि यह मुझे को एक क़ैद प्रतीति देते थे। मैं नहीं जानती थी कि यह मेरी ही योग्यता का एक प्रतिबिंबत है।आज मैं खुद की योग्यता से ही आज़ाद हो गई।
मेरी इस आज़ादी का स्वभाव, मुझ को जिस आयाम में ले गया, वो है मेरा ही रौशनी-रूप, मतलब कि मेरा ही चेतन-रूप। जब मैं इस आयाम में दाखिल हुई तो मेरी असीमता को सब से पहले तेरी याद आई। क्योंकि आज मेरे वजूद को सिर्फ तू ही समझ सकेगा, और कोई मुझ को मिला नहीं।
क्योंकि मैं जो भी देखती हूँ, वो सब मैं ही हूँ, तो जो आज तक मैंने किया वो क्या था?
संसार: अगर संसार मेरी योग्यता का नाम है तो मैं क्या हूँ?
अगर मेरा वजूद विशाल है तो खुदा क्या है ?
जिस की सोच, जिस की खोज मेरा जीना था?
ऐ ब्रह्माण्ड, आज से मैं तेरी शरण में हूँ, आज से मेरा सफर तेरे में से शुरू होता है, आज मुझ को तेरी राहनुमाई चाहिए, मेरी इस मांग को सम्पूर्ण कर।
झुके हुए सर के साथ धन्यबाद