When I know that I am not religious, then?
Since childhood, my thinking has been for me that I like the religious part of my life very much and I look at life from the religious part, think and behave again.
Be it Baba Nanak or Hazrat Muhammad; Be it Krishna or Jesus, be it a sage or a saint, I would have a very deep impact and my existence would have descended into a valley of silence and spent many days there.
When this effect became my inspiration, I would be filled with the feeling of becoming a friend of all the universe. My heart never felt in the world, I always felt a strange country. My feeling was always that God accidentally threw me into the world. I always found myself failing in every relationship. Till last year, I have been thinking that I can enjoy a mother's relationship with everyone very well. But the pace of time taught me that this thinking has forgotten me. With which my deepest forgetting has also ended that I look at life from the point of view of religion and have been watching till date.
My time has always proved my every moment wrong. My every thought, my every emotion, everything came out wrong. Whenever my life passed through that dimension of the time, which I had longed for, and this experience of my life which gave me experience, it would put a cross mark on my life. I always failed. I used to hear the sound of my success within my failure, so my martyrdom always remain high.
I am the deepest and most failed person around me. I had some success in this failure, which always kept me full of enthusiasm.
A few days ago, when I realized that mother's relationship could not be fulfilled, I also realized that I had never seen life in righteousness. So the question started playing with me. Because this question of seeing my life till date, had failed that thought.
When I lived in Canada, people used to treat me as an atheist because I never went to a religious place. When I used to go in my heart, I would not go every weekend. So the thinking of the people was that I do not believe in religion.
If I go to the GuruGhar, I am a Sikh
If I go to church, I obey Jesus.
If I go to the mosque, then I am called a Muslim.
If I go to the temple then I become a Hindu.
If I go in myself ---?
If I live in my own house ---?
So I was not religious, it was everyone's thinking. At that time there was a little anger on everyone's thinking, but when I look carefully at the life, I never really saw anyone with religious thought.
so ?
When today life took me even deeper, I saw that it is true that I never saw life even from the point of view of religion. I love every part of life, I have always seen life with an eye of love and have loved life, life belongs to anyone, it is mine. For this reason, my failure also never caused my pain, but gave me success silently and got me enrolled in the dimension of a happy life. From where I see that:-
Whatever the relationship is - to anyone, will limit the feeling;
Whatever be part of life, thinking will be limited;
I am allergic to pain, stress and anxiety in a limited way, whatever the disease, my life will never open for that, so.
This is me and this is my life, and this is my living
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जब मैंने यह जान लिया कि मैं धार्मिक नहीं हूँ, तो ?
बचपन से ही मेरी सोच मेरे लिए यही रही कि मेरे को ज़िंदगी का धार्मिक हिस्सा बहुत ही ज़्यादा पसंद है और मैं धार्मिक हिस्से में से ही जीवन को देखती हूँ, सोचती हूँ और फिर व्य्वहार करती हूँ।
बाबा नानक हो या हज़रत मुहम्मद ; कृष्णा हो या जीसस , कोई भी ऋषि हो या संत, मेरे पर बहुत गहरा असर होता और मेरा वजूद चुप की घाटी में उतर जाता और बहुत दिनों तक वहीँ पर जा के वस जाता।
जब यह असर मेरी प्रेरणा बन जाता तो मैं सब ब्रह्मण्ड की मित्र बन जाने की भावना से भर जाती। संसार में कभी मेरा दिल नहीं लगा,मेरे को सदा एक पराया मुल्क लगा। मेरी भावना सदा यही रही कि खुदा ने गलती से मेरे को संसार में फेंक दिया। मैंने सदा खुद को हर रिश्ते में असफल ही पाया। पिछले साल तक, मेरी यह सोच रही कि मैं सब के साथ एक माँ का रिश्ता बहुत अच्छा निभा सकती हूँ। पर वक़्त की रफ्तार ने मेरे को यह शिक्षा दी कि यह सोच भी मेरा भुलेखा है। जिस के साथ मेरा एक और गहरा भुलेखा भी ख़त्म हो गया कि मैं जीवन को धर्म की लिहाज़ से ही देखती हूँ और आज तक देखती रही हूँ।
मेरे वक़्त ने सदा मेरे हर पल को गलत साबित किया है। मेरी हर सोच, मेरी हर भावना, सब की सब गलत निकली। जब भी मेरा जीवन, वक़्त के उस आयाम में से गुज़रता, जिस की चाहना मैंने की होती थी और मेरे जीवन का यह तुजर्बे जो मेरे को अनुभव देता, वो मेरे जीने पर क्रॉस मार्क लगा देता।मैं सदा फेल ही रही। मेरे फेल होने में कही भीतर ही मेरे को मेरी क़ामयाबी की आहट भी सुनाई देती थी, सो शयद इस लिए मेरे हौंसले सदा बुलंदी ऊपर ही रहे।
मेरे आस-पास में से सब से गहरा और ज़्यादा फेल हुआ इंसान मैं ही हूँ। मेरे इस फेल होने में कोई कामयाबी थी, जो मेरे को सदा उमंग से भरी रखती थी।
कुछ दिन पहलों जब मेरे में यह समझ आ गई कि माँ का रिश्ता भी नहीं निभा सकती तो साथ ही मैं यह जान गई कि मैंने ज़िंदगी को कभी धार्मिकता में से देखा ही नहीं। तो सवाल मेरे साथ खेलने लगा। क्योंकि इस सवाल ने मेरी आज तक की ज़िंदगी को देखने की, जो सोच थी, उस को फेल कर दिया था।
जब मैं Canada में रहती थी, तो लोग मेरे को नास्तिक व्यक्ति ही सझते थे, क्योंकि मैं कभी धार्मिक जगह पर नहीं जाती थी।जब दिल में आता तो चली जाती, पर हर weekend को नहीं जाती थी। सो लोगों की सोच यही थी कि मैं धर्म को नहीं मानती।
अगर मैं गुरुघर जाती हूँ तो मैं सिख हूँ
अगर मैं चर्च में जाती हूँ तो मैं जीसस को मानती हूँ
अगर मैं मस्जिद में जाती हूँ तो मुसलमान कहलाती हूँ
अगर मैं मंदिर में जाती हूँ तो हिन्दू बन जाती हूँ
अगर मैं खुद में जाओ तो---?
अगर मैं खुद के घर में रहूं तो ---?
तो मैं धार्मिक नहीं, यह सब की सोच थी। उस वक़्त सब की सोच पर थोड़ा सा रोस भी हुआ था
पर जब जब मैं ज़िंदगी की ओर ध्यान से देखती हूँ
तो सच में ही मैंने कभी भी किसी को भी धार्मिक सोच से भी नहीं देखा।
तो ?
जब आज मुझे जीवन ओर भी गहरा ले गया तो मैंने देखा कि यह सच है कि मैंने धर्म की नज़र से भी जीवन को कभी नहीं देखा। मेरे को जीवन के हर हिस्से से प्यार है, मैंने जीवन को सदा प्यार की आँख से ही देखा है और जीवन को प्यार ही किया है, जीवन किसी का भी हो, वो मेरा ही है। इस लिए मेरा फेल होना भी कभी मेरे दर्द का कारण नहीं बना, बलिक मेरे को चुपचाप कामयाबी देता गया और मेरे को खुशहाल जीवन के आयाम में दाखिला दिलवा दिया . जहाँ से मैं देख रही हूँ कि
रिश्ता कोई भी हो- किसी से भी हो, भावना को सीमित ही करेगा;
जीवन का हिस्सा कोई भी हो, सोच को सीमित ही रखेगा;
मेरे को दर्द, तनाव और फ़िक्र की तरह सीमित-भाव से ही एलर्जी है, रोग कोई भी हो, उस केलिए मेरा जीवन कभी नहीं खुलेगा, सो
यही मैं हूँ और यही मेरा जीवन है, और यही मेरा जीना है।