Autumn:
as the leaves fall from the trees again,
I saw how the season of the mind changes, then the eternal dimensions of life are seen and that is what my thinking, every emotion, every experience is like Shrubs from me like these leaves are shrunk from trees and I always remain naked as naked. The lightness in my nakedness is my freedom. Now what should I say to these feelings going through every situation of my own? Now should I celebrate my freedom or should I regret those who are feeling my loss?
When I knew that this is the color of life and life has to go on like this, then. Not only the four seasons of life, there are infinite parts of these four seasons, which are passing through me today and I see them all, how I am falling into myself. This is a very unique event and monument, which is adorning me, adorning me with royal veneer. Because I understood that if I have to wear royal veneer, then I will be worn naked.
When I knew that this is the color of life and life has to go on like this, then. Not only the four seasons of life, there are infinite parts of these four seasons, which are passing through me today and I see them all, how I am falling into myself. This is a very unique event and monument, which is adorning me, adorning me with royal veneer. Because I understood that if I have to wear royal veneer, then I will be worn naked.
पतझड़:
जैसे पेड़ों से फिर पत्ते झड़ते हैं,
ऐसे ही मैंने देखा कि कैसे मन का मौसम बदलता है फिर ज़िंदगी के अन्नत आयाम दिखाई देतें हैं और जो मेरी हर सोच, हर भावना, हर अनुभव को ऐसे ही मेरे से झाड़ देतें हैं जैसे इन पत्तों को पेड़ों से झाडतें हैं और मैंने सदा खुद में नंगी की नंगी ही रहती हूँ। मेरे इस नंगेपन में जो हल्केपन है , वोही मेरी आज़ादी है। अब मैं खुद के हर हालात में से गुज़रते इन जज़बातों को क्या कहूं ? अब मैं खुद की आज़ादी की ख़ुशी मनाऊं या जो मेरे झड़ते हुए जज़्बात हैं, उन का अफ़सोस मनाऊं?
जब मैंने जान ही लिया कि ज़िंदगी का रंग यही है और ज़िंदगी ने ऐसे ने चलना है, तो। ज़िंदगी के चार मौसम ही नहीं, इन चार मौसमों के ही अनंत हिस्से हैं, जो आज मेरे में से गुज़र रहें हैं और मैं उन सब को देखती हूँ, कैसे खुद में ही झड़ती जा रही हूँ। यह बहुत ही अनूठी घटना और विराटता है , जो मेरे को नंगा करके, मेरे को शाही लिबास से सजा रही है। क्योंकि मैं समझ गई कि अगर मेरे को शाही लिबास पहनने हैं, तो नंगे हो के पहने जायेंगे।
जब मैंने जान ही लिया कि ज़िंदगी का रंग यही है और ज़िंदगी ने ऐसे ने चलना है, तो। ज़िंदगी के चार मौसम ही नहीं, इन चार मौसमों के ही अनंत हिस्से हैं, जो आज मेरे में से गुज़र रहें हैं और मैं उन सब को देखती हूँ, कैसे खुद में ही झड़ती जा रही हूँ। यह बहुत ही अनूठी घटना और विराटता है , जो मेरे को नंगा करके, मेरे को शाही लिबास से सजा रही है। क्योंकि मैं समझ गई कि अगर मेरे को शाही लिबास पहनने हैं, तो नंगे हो के पहने जायेंगे।