What is ॐ, is it not shaped by a unique experience or is it a story of a sage to whom it has been given? Have you ever thought about ॐ? If you have done, then identify me with that thought, if not, should you come with me?
Once I went to the 'Upasana Meditation Camp' in Vancouver (Canada). Our teacher instructed us to pronounce this name as I say. I would have done that name in just 5 minutes that I started getting inspiration from within me that I want to pronounce ॐ, not this name. So I started pronouncing ॐ according to the inner inspiration. It just went awesome. The first time I was inbound with ॐ. After that my love became even deeper with ॐ. I had such a deep intoxication of ॐ that if I had seen ॐ's sign somewhere, I would have been absorbed in ॐ itself. If someone had listened to ॐ's speech from his tongue, I would have reached the dimension of silence.
I felt that my relationship with ॐ is very old.
My journey with ॐ was 3 years. One such time I wondered why ॐ has been given this amazing shape. Is there any secret in this shape? Why the sage who gave this shape, he gave it, I just want to know it. I prayed before the universe, before God, and before life. As seeds were sown and now the harvest is awaited.
What is ॐ? Is there any mystery in this shape of ॐ? Do you see any mystery?
I can see, so today I will introduce my experience with ॐ. Look at ॐ's photo carefully and understand.
Now look at ॐ's shape carefully:
ॐ: ॐ is the statement of a sage's position.
ॐ is a description of the spiritual dimension.
Which is 'उ': The top of it is opened, it is the symbol of 'उ' heart.
Meaning that ॐ is a sign of a sage's position, indicating that the sage's heart and third netra are open.
Or we can simply say that when a person's position is this, that person is in the spiritual dimension. We can also call this self-realization.
***—***
एक बार मैं Vancouver (Canada ) में 'उपासना मैडिटेशन कैंप' पर गई। हमारे टीचर ने हम को हदायित दी कि ,जो मैं कहता हूँ, वैसे ही इस नाम का उच्चारण करो। मैंने उस नाम को सिर्फ ५ मिनट्स ही किया होगा कि मेरे को मेरे ही भीतर से प्रेरणा मिलने लगी कि इस नाम को नहीं, ॐ का उच्चारण करना है। सो मैंने भीतर की प्रेरणा के हिसाब से ॐ का उच्चारण करना शुरू कर दिया। बस कमाल ही गई थी। पहली बार मैं ॐ के साथ भीतर की यात्रा थी। उस के बाद मेरे प्यार ॐ अलफ़ाज़ के साथ भी गहरा हो गया। मेरे में ॐ का इतना गहरा नशा हुआ था कि अगर मैं ॐ का कहीं पर sign भी देख लेती, तो मैं ॐ में ही लीन हो जाती। अगर किसी की जुबां से ॐ का अलफ़ाज़ सुन लेती, तो मेरे में चुप के आयाम में पहुंच जाती।
मेरे को लगा कि ॐ के साथ मेरा रिश्ता बहुत पुराना है।
ॐ के साथ मेरी यात्रा ३ साल रही। ऐसे ही एक बार मेरे में सोच आई कि ॐ को यह एक अद्भुत आकार क्यों दिया गया है? कहीं इस आकार में कोई रहस्य तो नहीं? जिस ऋषि ने भी यह आकार दिया, उस ने क्यों दिया , बस मेरे को यह जानना है। मैंने ब्रह्माण्ड के आगे, खुदा के आगे, और ज़िंदगी के आगे प्रार्थना की। जैसे बीज बो दिए और अब फसल का इंतज़ार है।
ॐ क्या है ? क्या ॐ के इस आकार में कोई रहस्या है ? क्या आप को कोई रहस्या दिखाई देता है ?
मेरे को दिखाई देता है , सो आज मैं मेरा वो अनुभव, जो ॐ के साथ हुआ था, उस से मिलवाती हूँ।
अब ॐ की आकार को ध्यान से देखना:
ॐ : ॐ एक ऋषि की पोजीशन का ब्यान है।
ॐ आत्मिक आयाम का वर्णन है।
जो 'उ' है : इस का ऊपर की ओर खोला गया है , यह 'उ' दिल का प्रतीक है।
मतलब कि ॐ एक ऋषि की पोजीशन का चिन है जो कि यह बता रहा है कि ऋषि का दिल और तीसरा नेत्रा खुल चुक्का होता है।
या हम इस को सरल रूप से ऐसे कह सकतें हैं कि जब व्यक्ति की पोजीशन यह होती है तो वो व्यक्ति आधियात्मिक आयाम में होता है। इस को हम self -realization भी कह सकतें हैं।