It is just as if nature has given itself a work contract. That is to meet me with every particle and see what my reaction is and the effect on me?
Like, there is a rapture in every moment that he thinks of making his existence like that. So the moment also thought of becoming a companion of nature.
Whichever way I look, it seems that every gust of the universe wants to visit me only.
There is a strange atmosphere on every side, in which it seems that the eyes of everything are looking towards me. And I am standing in such a spotlight that I cannot hide myself anywhere. I look deeply into you as if no one can see that I have started seeing myself. I have a wonderful distinction towards me, like I am trying to talk to someone else, not me.
Without speaking, the art of speaking my words is coming from me, so when I lifted my eyes and saw who was giving this learning to me, I saw that a leaf falling from a tree in front of me was traveling towards the ground is. Seeing that falling leaf, the style of the tree, I had to learn how to express my feeling without speaking.
I saw from afar that a tree whose leaves were wearing yellow color was taking off from the world, but a new branch was growing in its root. As soon as I started making a video of the tree, then in this 30 minutes, the tree stated its feeling.
The tree said: -
Whenever life gives something, it also takes something at that time. Today some of my leaves are decorated in yellow color because they have time to go and some new leaves are coming because they are the time of arrival. If you want to look at life only with a blank eye, then all the reality will be seen and when we come to know the truth and falsehood, then we are beyond it. ''
Today I am going through the monk dimension. Everything is speaking the words of retirement. So I asked a tree dressed in monk colors
What is Sanyaas?
Is retirement really needed?
What is real renunciation?
Is the sannyasin recognized the truth of life?
At that time, with a light breeze, a thicket dusted the dry leaves hanging on the tree. A sound began to be heard in the sound of leaves shrub from the tree.
I remembered the song 'Gurdas Maan'.
"Peeed tere jaan ki kiddah jarga main”
(If you are gone, how will I end the pain of your departure)
The sound of the moving wind made every leaf a pattern, listening to which my silence turned into a trance. I was looking at a very big tree, which was quite old, and when I looked carefully at every branch of it, a very big branch was broken, which was still stuck with it.
When I saw the broken branch, moisture started floating in my eyes. Why? Then my eyes began to fall on every part of the tree, just as I am watching the tree carefully, the tree continues to share its feeling with me.
The tree was old and very large. With the tree itself not being lifted, a branch of the tree confessed to breaking itself to make the tree simple and comfortable.
After stopping the steps, I saw the tree and I gestured to the tree, then why is this branch stuck now? Is the burden still on you?
The tree said: -
Twig showed love to me, now it remains with me till it is completely gone.
Now this monastic dimension of nature answers me,
What is Sanyaas?
Sanyaas:
Leaf break is not Sanyaas, leaf loss is Sanyaas.
Just as a leaf falls from a tree,
similarly when a person falls from the material dimension.
Means bored.
The person does not need to retire, but life. Life is a big circle, which is also an exhibition in you, which goes through everything and every season. All the colors of life are visible to you, because you have passed through them.
Sannyas is a level that will come on every living being. The only thing worth remembering is that every part has infinite forms, colors as well as sizes.
like :
A person leaves home, leaves the tree in the same way. Sannyas is not a negative step, it is a part of life that you have to be depressed with the worldly dimension sometimes. Sadness means that you have come to know from every part of your life. There is nothing for you to do, so now you are not interested in the things of the world. Now your life wants to go to the next step.
Will you complete a class in school 5 times? will not do. How many times will you keep repeating 2 times 2 = 4?
So we will all become monks, but in what form it will be based on our own unique beauty.
What is real renunciation?
True and real renunciation starts when only one hunger or say thirst works in us, that now I have to be absorbed in the real form. A person whose mind has worn a monk's color, who has understood the understanding of life, who does not even have the desire of God, just looks at himself with passion and looks at the universe patiently is. Such a person is a complete monk.
And it is also absolutely true that whatever our form may be, when we are bored with worldly life, there will be sadness in us. To overcome the sadness, we will look at someone upwards. We can also call this upper level God, we can also say the highest level of life, and we can also say soul.
Today there are sanyasi waves in every leaf of the tree, which captivates my soul and makes me learn the renunciation of life. This is the conversation that is happening among us without our words, I see how the atmosphere around me is silent and listening to it. Because the waves will never end and these waves will increase their own aura.
I asked the tree what is the mind of a monk?
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जैसे आज हर पल में उतावलापन है कि वो आपने वजूद को भी जैसे युग बना देने की सोचता है। तो पल ने भी कुदरत का साथी बन जाने की सोच ले ली।
जिस तरफ भी मेरी नज़र पड़ती है, ऐसे लगता है कि ब्रह्माण्ड का हर झोँका, मेरे से मुलाकात करके ही जाने की चाहत रखता है।
हर तरफ़ एक अजीब सा माहौल है, जिस में ऐसे लगता है कि हर चीज़ की आँखें मेरी ओर ही देख रही है। और मैं, एक ऐसे spotlight में खड़ी हूँ कि मैं खुद को कहीं छुपा भी नहीं सकती। मैं आपने ही गहरे में ऐसे झांकती हूँ कि जैसे किसी की नज़र न पड़ जाए कि मैं अब खुद को ही देखने लगी हूँ। मेरा मेरे प्रति ही सलूक एक अद्भुत भेदभरा है, जैसे मैं मेरे से नहीं, किसी ओर से बात करने की कोशिश कर रही हूँ।
बिन बोले ही अपनी बात को बोलने की कलाकारी, मेरे में कहा से आ रही है तो जब मैंने आँख उठा कर देखा कि यह सीख मेरे को कौन दे रहा है तो मैंने देखा कि मेरे आगे एक पेड़ से गिरता पत्ता ज़मीन की ओर यात्रा कर रहा है। उस गिरते पत्ते को देखते, पेड़ का अंदाज़, मेरे को यह सीख दे गया कि बिन बोले ही अपनी भावना को कैसे प्रगट करना है।
मैंने दूर से देखा कि उस एक पेड़ को जिस के पत्ते पीले रंग को पहन कर संसार से विदा ले रहे थे, पर उस की जड़ में ही नई टहनी अंकुर हो रही थी। जैसे ही मैंने पेड़ की वीडियो बनाने लेगी तो इस ३० मिनट्स में ही पेड़ ने अपनी भावना को ब्यान किया।
पेड़ ने कहा:-
ज़िंदगी जब भी कुछ देती है तो उस वक़्त कुछ लेती भी है। आज मेरे कुछ पत्ते पीले रंग में सज गए हैं क्योंकि उन का जाने का वक़्त है और कुछ नए पत्ते आ रहें हैं क्योंकि उन का आने का वक़्त है। ज़िंदगी की ओर सिर्फ कोरी आँख से ही देखना है तो सब असलियत दिखाई देगी और जब हम सच और झूठ को जान लेते हैं तो हम उस के पार हो जातें हैं।''
संन्यास है क्या ?
क्या सच में ही संन्यास की ज़रुरत होती है?
असली सन्यास क्या होता है ?
क्या सन्यासी हो के ही ज़िंदगी के सत्य को पहचाना जाता है ?
उसे वक़्त हवा के एक हलके से झौंके ने आ के पेड़ पर लटके सुक्के पत्तों को झाड़ा। पेड़ से झाड़ रहे पत्तों की आवाज़ में एक तर्ज़ सुनाई देने लगी।
मेरे को 'गुरदास मान ' के गीत की याद आई।
'' पीड़ तेरे जान की किदह जरगा मैं ''
चलती हवा की छो ने हर पत्ते को सुर दे के तर्ज़ बना दिया ,जिस को सुन कर मेरी ख़ामोशी मदहोशी में बदल गई। मेरी नज़र बहुत बड़े पेड़ पर थी, जो कि काफी बूढ़ा हो चूका था, और मैंने गौर से उस की हर टहनी को देखा तो एक बहुत बड़ी टहनी टूटी हुई थी, जो अभी भी उस के साथ ही अटकी हुई थी।
मैंने जब टूटी हुई टहनी को देखा ,तो मेरी आँखों में नमी तैरने लगी। क्यों ? तब मेरी नज़र पेड़ के हर हिस्से पर पड़ने लगी तो, जैसे जैसे मैंने पेड़ को गौर से देखती जा रही हूँ, वैसे ही पेड़ अपनी भावना को मेरे साथ सांझा करता जा रहा है।
पेड़ बूढ़ा था और बहुत बड़ा था। पेड़ से खुद का बोझ ही उठाया नहीं जा रहा तो पेड़ की एक टहनी ने पेड़ को सरल और सहज करने के लिए खुद को टूट जाना ही कबूल किया।
मेरे चलते कदमों रुक कर पेड़ को देखा और मैंने इशारे से ही पेड़ से पुछा तो फिर यह टहनी अब अटका क्यों है ? बोझ तो अभी भी आप पर है ?
पेड़ ने कहा :-
मेरे को टहनी ने प्यार दिखा दिया , अब जब तक यह पूर्ण रूप से ज़िंदगी से चली नहीं जाती, तब तक यह मेरे ही पास रहे।
अब कुदरत का यह सन्यासी आयाम, मेरे को जवाब देता है कि संन्यास है क्या ?
संन्यास :
जैसे पेड़ से पत्ता झड़ता है, वैसे ही जब व्यक्ति पदार्थी-आयाम से झड़ता है। मतलब ऊबता है।
संन्यास की ज़रूरत व्यक्ति को नहीं, ज़िंदगी को होती है। ज़िंदगी एक बहुत बड़ा घेरा है , जो आपने आप में एक प्रकीर्ति भी है, जो हर चीज़ में से और हर सीजन में से गुज़र कर जाती ही है। ज़िंदगी के जितने भी रंग आप को दिखाई देते हैं, वो इस लिए कि आप उन में से गुज़र चुक्के हो।
सन्यास एक लेवल है, जो हर जीव पर आएगा ही। बात सिर्फ यह याद रखने के योग्य है कि हर हिस्से के अनंत रूप भी होतें हैं, रंग भी और आकार भी।
जैसे :
त्यागी व्यक्ति घरबार छोड़ता है , वैसे ही पत्ता पेड़ को छोड़ता है। सन्यास नकारात्मिक कदम नहीं है , यह ज़िंदगी का हिस्सा है कि आप ने कभी कभी सांसारिक आयाम से उदास होना ही है। उदासी मतलब कि आप आपनई ज़िंदगी के हर हिस्से से जानू हो गए। वहां पर आप के करने को कुछ नहीं है, सो अब आप को संसार चीज़ों में दिलचस्पी नहीं है। अब आप की ज़िंदगी अगले कदम पर जाना चाहती है।
क्या आप स्कूल में एक क्लास को ५ बार पूरी करोगे ? नहीं करेंगे। कितनी बार २ टाइम्स २=४ को दुहराते रहोंगे ?
सो हम सब सन्यासी बनेगे ही।
असली सन्यास क्या होता है ?
सच्चा और असली सन्यास तब शुरू होता है, जब हमारे में सिर्फ एक ही भूख या कहो प्यास काम करती है, कि जब अब मैंने आपने असली रूप में ही लीन होना है। ऐसा व्यक्ति ,जिस के मन ने सन्यासी रंग पहन लिया हो, जिस ने जीवन की समझ को समझ लिया हो, जिस में खुदा की चाहना भी नहीं रहती, बस खुद में ही फ़ना होने की लग्न पूरे जोश में और सब्र में ब्रह्माण्ड की ओर देखती है। ऐसा व्यक्ति सम्पूर्ण सन्यासी है।
और यह बात भी बिलकुल सच है कि हमारा रूप कोई भी हो, जब हम संसारी जीवन से ऊबते हैं तो हमारे में उदासी आएगी ही। उदासी को दूर करने के लिए हम किसी ऊपर की ओर देखेंगे ही। हम इस ऊपर के लेवल को खुदा भी कह सकतें हैं, ज़िंदगी का सब से ऊचा तल भी कह सकतें हैं, और आत्मा भी कह सकतें हैं।
आज पेड़ के हर पत्ते में सन्यासी तरंगें हैं, जो मेरी रूह को लुभाती है और मेरे को ज़िंदगी का संन्यास सीखती है। यह जो हमारी लफ़्ज़ों के वग़ैर ही आपस में वर्तालाप हो रही है, मैंने देख रही हूँ कि कैसे मेरे हर तरफ का माहौल चुप हो के इस को सुन रहा है। क्योंकि तरंगें कभी ख़त्म नहीं होगी और यह तरंगें खुद का औरा बढ़ाती जायेगी।
मैंने पुछा पेड़ से कि सन्यासी मन कैसा होता है ?
आगे पढ़िए
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