So the flower said,
"When I am here with life and in life, I am here only; I am completely here so that I can understand the science of this new movement of nature and identify myself. Because I have seen and understood that we are born in time, that we can go into eternity.
Time is the world and eternity is God; Horizontal is the world, vertical is God. From here and now I can go on two trips:
One: My journey in the world, which I shall call the future.
Secondly in my journey to God, which I shall call depth of reality. ''
I again asked that the statement of depth be told openly.
So the flower said again,
"Depth" means that as my seed sprouts and I start taking form, color and shape. So when my awareness for this form also increases, then I see how I get vastness, bigger and freer in my growing color and shape form. ''
Then I quickly asked the flower how it was?
Flower said,
"My awareness of me makes me so sensitive that if I recognize the tree lying in the seed, it also recognizes the space lying in the seed. Meaning that my deep awareness knows both the shape and the formless very well. So when we become more and more vigilant and sensitive towards ourselves in our present, these two parts will be born together in the same way. Now when you look at me, just calm down and look deeply, then you will never ask anyone anything, only your deepest view will tell you everything.''
When I looked at the flower before leaving, I knew the same and also understood that the flower had blossomed in my own consciousness. And today, on my asking, the flower that had just blossomed, also awakened its consciousness.
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छोटी सी वर्तालाप
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फूल की निर्वाणा यात्रा
तो फूल ने कहा,
'' जब मैं यहाँ पर ज़िंदगी के साथ हूँ, ज़िंदगी में हूँ, तो मैं सिर्फ यहीं पर हूँ; पूरी तरह से यहीं पर हूँ ता कि मैं प्रकीर्ति के इस नए आंदोलन की विद्या को समझ सकूं और खुद को पहचान सकूं। क्योंकि मैंने देखा और समझा यही है कि हम वक़्त में पैदा होतें हैं, ता कि हम अनंत काल में जा सकें।
समय संसार है और अनंत काल भगवान है; क्षैतिज दुनिया है, ऊर्ध्वाधर भगवान है।
यहां से और अब मैं दो यात्रा पर जा सकते हूँ :
एक: दुनिया में मेरी यात्रा, जिस को मैं भविष्य ही कहूंगा।
दूसरी मेरी यात्रा परमात्मा में, जिस को मैं गहराई ही कहूंगा।''
मैंने पुछा फिर से कि गहराई की बात ज़रा खुल कर ब्यान कर दो।
तो फूल ने फिर से कहा,
''गहराई का मतलब कि जैसे मेरा बीज अंकुर होता है और मैं रूप रंग आकार लेने लगता हूँ। तो इस रूप रंग के लिए जब मेरी जागरूकता भी बढ़ती है तो मैं देखता हूँ कि कैसे मैं खुद के बढ़ते रंग रूप आकार में ही विशाल, विराट और आज़ाद होता जाता हूँ। ''
मैंने फिर झट से पुछा कि वो कैसे ?
फूल ने कहा,
'' मेरी मेरे प्रति जागरूकता , मेरे को ऐसा संवेदनशील बना देती है कि मैं बीज में पड़े जैसे पेड़ को पहचान लेता हूँ, वैसे ही बीज में पड़े स्पेस को भी पहचान लेता है। मतलब कि मेरी गहरी जागरूकता आकार को और निराकार दोनों को ही अच्छी तरह जानती जाती है। सो जब हम खुद के वर्तमान में ही खुद के प्रति ज़्यादा से ज़्यादा और गहरे से गहरा सतर्क और संवेदनशील बनेंगे तो यही दोनों हिस्से वैसे ही एक साथ जन्म लेंगे। अब जब तुम मेरी ओर देखोगे तो बस शांत हो के गहरी दृष्टि से देखेंगे तो फिर कभी भी आप किसी से भी कुछ पूछोगे नहीं, तुम्हारी गहरी देखनी ही आप को सब बता देगी।''
जब मैंने जाने से पहले फूल की ओर देखा तो मैंने यही जाना भी और समझा भी कि फूल मेरी ही चेतना में खिला हुआ था। और आज मेरे पूछने से ,जो फूल खिला ही हुआ था, उस की चेतना भी जाग गई।