miraculous experience of unique question
Today's experience is the grandfather of all experience. Today I thought all day what should I do? What is the work in life, which is capable of doing, which even if thought about, would have ended its death. Not only of my experience, the answer to every question would also stop at death, the character of my thinking would also stop at death, every relationship would also stop at death, so what should I do to get ahead of death?
Which step, which thought, which emotion, or which character is such that one who crosses death, this thinking was my way to this day and I traveled 12 hours on this path.
So in the deep atmosphere of silence I asked the moment how to use you, because if I use the moment properly, this moment will become my guide.
When I was not feeling anything, I prayed to God that now you can come and live this moment. (God means the deepest conscious form) I had said that as soon as the old door opens on a far distance and the sound of its opening, the same voice comes to me. As if somewhere far away, an undiscovered door is open. I cannot see, but I go inside it. My entry into a very calm environment is such that as soon as my step was in that dimension, then that dimension rose on my breath. Everything in me was moving in that dimension.
I also remembered this morning what I had said and what experience I was looking for. Right now I could not understand what all this is, and why it is happening, but I saw that a dimension is living on my breath.
I was passing through a pale pink color and a faded purple aura. It was as if it was a tunnel. My heartbeat remained the beat of all dimensions. I was surprised that such a big dimension depends on my breath and it is growing.
Now how do I separate myself from this dimension?
I thought that if I stop my breath for a few moments?
To complete this thinking, I first looked at everything everywhere. When I looked at it comfortably, I stopped taking breath.
First of all I felt the cold air coming from my ears.
The whole dimension is very powerful, something happened in just one place. There was no blowing of air there. The agony of that place could not withstand even from me and I breathed quickly. How I was deeply involved with all of them, it was a unique incident for me too, but I was going through all of it comfortably. This was a huge dimension, from which it took 100 births to pass through me.
Now I had to go out.
I noticed that when one of my steps was out of this dimension, some part of the dimension fell like buildings falling when earthquake occurred. But I had to go out, as soon as I had taken the second step out, I saw that there was no such dimension there, it disappeared as if the dream disappears upon waking up. I repeatedly look back and see if there was really anything there?
This question got entangled in my mind.
And when I look ahead of myself, the same dimension, in which I am just like a particle, is ahead of me. That small dimension took a very big form. The story all turned upside down.
Now in this dimension, my breath is not mine but someone else's. I depend on someone else. And I don't like that I depend on anyone. So I have to make the first step my last step, so what should I do now, this question got entangled in me.
Where to go, how to go, which way to go, I don't know anything, just know that I have never depended on any other breath. I had just closed my eyes, I had not spoken anything yet, so the sound of the old door came again from somewhere far away. So, when I comfortably opened my eyes, I was in such a place, from now on I could see both the dimensions.
The first was my body and the second was the visible and invisible universe. Now I was there, from here both these dimensions were within me and I was still outside. There is no thought or feeling called death and life.
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अनूठे सवाल का निराला अनुभव
आज का अनुभव सब अनुभव का दादा है। आज मैंने सब दिन यही सोचा कि मैं क्या करूं ? ज़िंदगी में ऐसा कौन सा काम है, जो करने के काबिल है, जिस के बारे में भी सोचती, तो उस का खत्म मौत पर जा के रुक जाता। मेरे हर अनुभव का ही नहीं, हर सवाल का जवाब भी मौत पर रुक जाता, मेरी हर सोच का किरदार भी मौत पर रुक जाता , हर रिश्ता भी मौत पर रुक जाता, तो मैंने ऐसा क्या करूँ कि जो मौत से आगे निकल जाए ?
कौन सा कदम, कौन सी सोच, कौन सी भावना, या कौन सा किरदार ऐसा है कि जो मौत को क्रॉस कर दे , यह सोच आज के दिन के लिए मेरी राह थी और मैंने १२ घंटे इस राह पर यात्रा की।
तो मैंने साइलेंस के गहरे माहौल में पल से पुछा कि मैं तेरा कैसे इस्तेमाल करूं , क्योंकि अगर मैंने पल का सही इस्तेमाल कर लिया तो, यह पल मेरा मार्ग-दर्शक बन जाएगा।
जब मेरे को कुछ भी सूझ नहीं रहा था, तो मैंने खुदा से प्रार्थना की कि अब आप ही आके इस पल को जीओ। ( खुदा का मतलब कि सब से गहरा चेतन-रूप ) ऐसा मैंने कहा ही था कि जैसे बहुत पुराना दरवाज़ा कहीं दूर पर खुलता है और जैसे उस के खुलने की आवाज़ होती है, वैसी ही आवाज़ मेरे को आती है। जैसे कि कहीं दूर, बहुत दूर कोई अनदेखा दरवाज़ा खुला है। मैं देख नहीं सकती पर मैं उस के भीतर चली जाती हूँ। बहुत ही शांत वातावरण में मेरा प्रवेश ऐसे होता है कि जैसे ही मेरा कदम उस आयाम में पड़ा तो मेरी सांसे पर ही वो आयाम जी उठा। मेरे भीतर की सब हिलजुल उस आयाम की हिलजुल बनी हुई थी।
मेरे को आज की सुबह भी याद थी कि मैंने क्या कहा था और मैं किस अनुभव की तलाश में थी। अभी मेरे को यह समझ ही नहीं आ रही थी कि यह सब क्या है, और यह क्यों हो रहा है, पर मैंने यह देख लिया कि मेरी सांसों पर एक आयाम जी रहा है।
हल्के गुलाबी रंग और फीका जामनी रंग की आभा में से मैं गुज़र रही थी। ऐसे लगता था कि जैसे यह कोई सुरंग है। मेरी धड़कन ही सब आयाम की धड़कन बनी हुई थी। मैं हैरान हो गई कि मेरी साँसों पर इतना बड़ा आयाम निर्भर है और पल रहा है।
अब मैं खुद को इस आयाम से अलग कैसे करूं ?
मैंने सोचा कि अगर कुछ पल मैं अपनी साँसों को रुक दूं तो?
यह सोच को पूरा करने के लिए मैंने पहले सब ओर आराम से देखा। जब पूरे आराम से देख लिया तो मैंने साँसों को लेना बंद कर लिया।
सब से पहले मैंने आपने ही कानों में से आ रही ठंडी हवा को महसूस किया।
सब आयाम बहुत ही शक्तिशाली है , सिर्फ एक जगह पर कुछ होने लगा था। वहां पर हवा का झोँका नहीं जा रहा था। उस जगह की तड़फना मेरे से भी झेली न गई और मैंने झट से साँसें ले डाली। कैसे मैंने उन सब के साथ गहरे में जुडी हुई हूँ, यह मेरे लिए भी अनूठी वारदात थी, पर मैंने आराम से सब में से गुज़र रही थी। यह बहुत ही बड़ा आयाम था, जिस में से गुज़रते हुए मेरे को १०० जन्म लग गए।
अब मैंने बाहर जाना था।
मैंने देखा कि मेरा एक कदम जब इस आयाम से बाहर हुआ था, आयाम का कुछ हिस्सा ऐसे गिरा, जैसे भूचाल आने पर इमारतें गिरती हैं। पर मैंने बाहर जाना ही था, जैसे ही मैंने आपने दूसरा कदम बाहर रखा था तो देखा कि वहां पर वो आयाम है ही नहीं था, सब ऐसे गायब हो गया जैसे जागने पर सपना गायब हो जाता है। मैं बार बार पीछे की ओर मुड़ कर देखती हूँ कि कहीं सच में ही वहां पर कुछ था?
यह मेरा सवाल मेरे जेहन में धस कर बैठ गया।
और मैं खुद के आगे की ओर देखती हूँ तो वोही आयाम , जिस में मैं सिर्फ एक कण जैसी हूँ, मेरे आगे है। उस छोटे से आयाम ने बहुत बड़ा रूप धारण कर लिया। कहानी सब उल्ट हो गई।
अब इस आयाम में मेरी साँसें मेरी नहीं, किसी ओर की है। मैं किसी ओर पर निर्भर हूँ। और मैं यह पसंद नहीं करती कि मैं किसी पर निर्भर हूँ। सो पहले ही कदम को मैंने अब अपना आख़री कदम बनाना है , तो अब मैं क्या करूं , अब यह सवाल मेरे में धस गया।
कहाँ जाऊं , कैसे जाऊं, किस तरफ़ जाऊं, कुछ भी नहीं पता , सिर्फ यह पता है कि मैंने किसी ओर की सांसें पर कभी निर्भर नहीं होना। मैंने अभी आँखों को बंद ही किया था, अभी मैं कुछ बोली भी नहीं थी ,तो वहीँ पुराने दरवाज़े की आवाज़, कहीं दूर से फिर आई। तो, जब मैंने आराम से खुद की आँखों को खोला तो मैं एक ऐसे जगह पर थी, यहाँ पर से अब मुझे दोनों ही आयाम दिखाई दे रहे थे।
पहला मेरा जिस्म था और दूसरा दिखाई देने वाला और ना दिखाई देने वाला ब्रह्मण्ड था। अब मैं वहां पर थी, यहाँ पर से यह दोनों आयाम मेरे ही भीतर थे और मैं फिर भी इन से बाहर थी। मौत और ज़िंदगी नाम की कोई भी सोच या भावना नहीं है।