When I share the new experiences of everyday with everyone in the form of a post, a question again started buzzing on the mind's shadow today. The question was-
If I have any experience then why do I want to share with you all?
If I came to the answer that this is the rule of my life that we are all aware of each other, then if I had the money to pay for a new experience, would I have shared it or just told it or how I got it?
Money is very important. It is also natural to become greed of need. When does greed become necessary? When we forget the rest of our life. Necessity remains necessary - as long as we remain vigilant for every part of life. This mistake takes away from us the rest of our life.
If I am the channel of experience today, then I am sharing, so no one comes to ask how we will have this experience - or that we too have such experience, if I were talking about money, what would it have been like?
A very deep experience: which is very true: and very painful: from which we will all know that we ourselves are our greatest enemies, we do not need any other enemies.
I have seen and I have understood that life fulfills one another only in life and it is the rule of every sphere of life. I have known life so deeply that I am the one who produces me. I recognized that as we have wisdom, so we identify life. We are all just one channel - for each other. As human comes in our life, it comes only to increase our information - if we feel that none of our information is increasing, then our way of seeing will be more or our understanding will be somewhere else. But we are all living under one rule, then the rule applies to all.
We have always come out of a deep experience that we all look at the beauty of face first and then we can see the beauty of mind or heart - just like this we first see money, then we can see someone's understanding and wisdom.
As much as we are focused on the above persecution, in the same way rules are applied on our lives and we become entitled to happiness and sorrow.
Today, when I thought in the morning why I could write and share it, much of this became my understanding and inspired me even more. In which I felt that the most important point was that this is the movement of my life. If this movement of mine stops, then I stop.
We all are a source of information, knowledge and beauty for each other, yes, by which we also know - we also learn and pave the way for each other.
The experience that we take directly becomes our understanding - say that what we study becomes our understanding, it does not happen. The information is either read, or on our experience, it serves as a seal that the experience of someone else is similar to our experience. Which gives our mind a rest whether we are right or wrong.
Be it Quran or Puran
'God is the identity of God'
Before that, according to our own thinking, we are bound to be satisfied, whom we are sitting with as our wisdom. When we have only read that 'a person is identified by his friendship'
May we not misunderstand any part of life or accept it, life does not matter. Wrong is the limiting point of why we think it is wrong. There is nothing in life nor anything wrong.
The 'wrong' that we have seen, believed, or understood wrong - it is far from our thinking, our idea understanding.
I see how huge and vast every person is. There is no limit to the status of that. This life is such a deep subject, and how everything describes this subject - Amazing. Everything is the same thing - taking different colors and making life beautiful. Because everything is a book for everyone, there is nothing more precious than this, nor is there any religious book deeper than this - be it any religion or religious book; - Whoever went to write the Sage-Saint or Peer-Paigamber, they have all read this real natural book, then have given themselves the experience to us
------***-----
हर रोज़ के नए अनुभवों को जब पोस्ट के रूप में सब के साथ सांझी करती हूँ तो एक सवाल ने फिर आज दिमाग के छते पर भिनभिनाना शुरू क्र दिया। सवाल यह था कि-
अगर मेरे को कोई भी अनुभव होता है तो मैं क्यों,आप सब के साथ सांझा करना चाहती हूँ?
अगर मेरा में जवाब यह आया कि यही ज़िंदगी का रूल है कि हम सब एक दूसरे के लिए जानकारी हैं तो यह होना ही है ,होगा ही .
अगर मेरे पास नए अनुभव की वजाए पैसा आता तो क्या मैं उस को सांझा करती या सिर्फ यह बताती कि या मेरे पास कैसा आया ?
पैसा बहुत बड़ी ज़रुरत है। ज़रुरत का लालच बन जाना भी कुदरती है। ज़रुरत लालच कब बन जाती है? जब हम ज़िंदगी के बाकी के हिस्से को भूल जातें हैं। ज़रूरत तब तक ज़रुरत ही रहती है- जब तक हम ज़िंदगी के हर हिस्से केलिए सज़ग रहतें हैं। यह हमारी भूल हम से ज़िंदगी के बाकी के हिस्से छीन लेती है।
अगर आज अनुभव का ही मैं चैनल हूँ तो मैं सांझा कर रही हूँ, तो कोई पूछने नहीं आता कि हम को यह अनुभव कैसे होगा- या कि हम को भी ऐसा अनुभव होता है, अगर मैं पैसे की बात करती तो क्या ऐसे ही होता ?
बहुत गहरा अनुभव: जो कि बहुत ही सच्चा है: और बहुत ही दर्द देने वाला: जिस से हम सब जान जाएंगे कि हम खुद ही अपने सब से बड़े दुश्मन हैं ,हम को किसी और दुश्मन की ज़रुरत नहीं है।
मैंने देखा और मैंने समझा है कि ज़िंदगी ज़िंदगी के राहीं ही एक दूसरे की पूर्ति करती है और यह ज़िंदगी के हर क्षेत्रा का रूल है। मैंने ज़िंदगी को बहुत गहरे से जाना कि मैं ही मैं को पैदा करती है। मैंने पहचाना कि जैसे हमारी बुद्धि होती है,वैसे ही हम जीवन की पहचान करतें हैं। हम सब सिर्फ एक चैनल हैं -एक दूसरे के लिए। जैसा भी हमारी ज़िंदगी में इंसान आता है , वो हमारी जानकारी को बढ़ाने के लिए ही आता है- अगर हम को लगे कि हमारी कोई भी जानकारी बढ़ नहीं रही तो हमारे देखने का तरीक़ा और होगा या हमारी समझ कहीं और जगह पर होगी। पर हम सब एक रूल के आधीन ही जी रहें हैं, तो रूल सब पर लागु होता है।
हम सब सदा ही एक गहरे तुजर्बे में से निकले हैं कि हम सब पहले शक्ल देखतें हैं फिर कहीं जाके हम सीरत देख पातें हैं -बिलकुल ऐसे ही पहले हम पैसा देखतें हैं, फिर किसी की समझ और बुद्धि देख पातें हैं।
जितना हम उपरली सता पर केंद्रित होतें हैं, वैसे ही हमारे जीवन पर रूल लागु होतें हैं और हम सुख-दुःख के हक़दार बन जातें हैं।
आज जब मैंने सुबह सोचा कि क्यों मैं लिख कर सांझ पा तो इस के बहुत ज़्यादा हिस्से मेरी समझ बन कर मेरे को और भी प्रेरित कर गए। जिस में सब से ज़रूरी यही बिंदु मेरे को लगा कि मेरे जीवन की यही मूवमेंट है। अगर मेरा यह मूवमेंट रुकता है तो मैं ही रुक जाती हूँ।
हम सब एक दूसरे केलिए एक जानकारी का, ज्ञान का और सुंदरता का जरिया हां, जिस से हम जानते भी हैं- सीखतें भी हैं और एक दूसरे केलिए राह भी बनतें हैं।
जो अनुभव हम सीधा लेते हैं, वोही हमारी समझ बनता है- कहें कि जो भी हम पढ़तें हैं , वो हमारी समझ बन जाता है, ऐसा नहीं होता। पढ़ा हुआ या तो जानकारी बनता है, या हमारे अनुभव पर यह मोहर का काम करता है कि हमारे अनुभव जैसा ओर भी किसी का अनुभव था और है. जिस से हमारे मन को आराम मिलता है कि हम सही हैं या गलत।
क़ुरान हो या पुराण
' देव हो के ही देव की पहचान होती है '
उस से पहले हमारे सब खुद की सोच के अनुसार लफ्ज़ ही हैं, जिन को हम अपनी अक्ल मान कर बैठे हुए हैं । जब हम ने आम ही पढ़ा है कि कि 'व्यक्ति की पहचान उस की दोस्ती से होती है '
हम ज़िंदगी के किसी भी हिस्से को गलत सोच लो या उस को कबूल न करो, ज़िंदगी को कोई फर्क नहीं पड़ता। गलत जिस को हम सोच रहें हैं, वो गलत क्यों लगता है, यह का एक सीमित बिंदु है। ज़िंदगी में न ही कुछ फालतू है और न ही कुछ गलत।
'ग़लत' जिस को भी हम ने ग़लत देखा, माना ,या समझा - वो सिर्फ हमारी सोच से, ख़्याल से , समझ से बहुत ही दूर है।
मैं देखती हूँ कि हर व्यक्ति कितना ही विशाल और विराट है। जिस की औकात का कोई भी पारावार नहीं। इतना गहरा सब्जेक्ट है यह ज़िंदगी, और हर चीज़ इस सब्जेक्ट को कैसे ब्यान करती है- अमेजिंग। सब एक ही चीज़ - अलग अलग से रंग ले के ज़िंदगी को खूबसूरत बना रही है। क्योंकि हर चीज़ ही हर एक केलिए एक किताब है, इस से अनमोल और कोई भी किताब नहीं, और न ही इस से गहरी ओर कोई धार्मिक किताब है- कोई भी धर्म हो या धार्मिक ग्रन्थ हो; - जो भी ऋषि- मुनि- पीर - पैगंबर लिख कर गए, वो सब इस असली कुदरती किताब को पढ़ कर, फिर खुद के अनुभव को हम को दे कर गए हैं
-----=----