Planting conscious thorns and planting flowers in unconsciousness:
no difference between the two
no difference between the two
Even the absence of silence in the ears was such that the whole universe went into the muted system.
Like the heartbeat ceased to be cast.
Just like today silence revolted with silence
Only anonymity was a question in my eyes.
The silence of the trees was deeper than my silence. A strange sight coming from far away from the sky, which peeks at me from the middle of the trees, another eye looking at me from the right side, in which there is a very deep sense of life, the amazing beauty in which death and life The realization of the question was sending a wave of its own to me.
Such a wonderful and such a matchless environment, in which there was nothing else without the realization of God.
On the one hand, I speak my tongue and on the one hand my existence is giving only a testimony in the deep sense of silence. A deeply impatient gaze coming from the trees makes me stand before both death and life.
Death says: Why do I have to live?
Life says: Do you want me to live?
Same question for both.
I want to live, death or life
What do I think and believe in death?
What do I understand and believe in life?
Before these two, what do I think myself and what do I believe?
A deep cave of emptiness
What do you think about life?
A unique dream with open eyes
What do you think about death?
Beyond relaxation, rest and restless.
Now have you gone to death or to life?
There is no difference.
Life and death both looked different but not different. So there is no difference.
Today, when I was standing in this environment, the questions that were for me - the answer to them was becoming my testimony, then after a long time, I thought that, when will all this questioning process end?
Life is very sensible in you. It takes action only after seeing the thirst and hunger of the person. I see why the root of my existence was so deep. A lot of time has passed. This method had to deepen the root. Life is a wonderful thing in you. The more we go into the depths of this - the more it becomes our recreational tool.
This world is a game of death, not life. There are only a few players who play in the field of life. We cannot become players of life until we know death. Today, I stand before death and life only because I had to live full and full. She wanted to embrace life completely. Without the understanding of death, life cannot blossom.
Today, looking at death and life, we only remember our thirst. If there was no thirst, it would not have happened. My thirst was so deep that I could not even hug aeriana (daughter), if there was any other thought in me. Whoever I wanted to meet, I wanted to meet you wholeheartedly. I had a very deep allergic from incompleteness.
Today, face to face death and life is a very unique experience. Chup has attacked Chup. The silence of the tongue is a statement from the eyes. The silence of eyes is characterized by emptiness. The emptiness expresses itself silently.
Amidst the silence, the silence of silence is so deep that in this blissful state what is death, what is life, nothing.
So the silent gaze of my silent existence, bowing with silence, welcomes death and life.
***—***
Life is very sensible in you. It takes action only after seeing the thirst and hunger of the person. I see why the root of my existence was so deep. A lot of time has passed. This method had to deepen the root. Life is a wonderful thing in you. The more we go into the depths of this - the more it becomes our recreational tool.
This world is a game of death, not life. There are only a few players who play in the field of life. We cannot become players of life until we know death. Today, I stand before death and life only because I had to live full and full. She wanted to embrace life completely. Without the understanding of death, life cannot blossom.
Today, looking at death and life, we only remember our thirst. If there was no thirst, it would not have happened. My thirst was so deep that I could not even hug aeriana (daughter), if there was any other thought in me. Whoever I wanted to meet, I wanted to meet you wholeheartedly. I had a very deep allergic from incompleteness.
Today, face to face death and life is a very unique experience. Chup has attacked Chup. The silence of the tongue is a statement from the eyes. The silence of eyes is characterized by emptiness. The emptiness expresses itself silently.
Amidst the silence, the silence of silence is so deep that in this blissful state what is death, what is life, nothing.
So the silent gaze of my silent existence, bowing with silence, welcomes death and life.
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होश में कांटे लगाने और बेहोशी में फूल लगाने:
दोनों में कोई फ़र्क़ नहीं
दोनों में कोई फ़र्क़ नहीं
दिल की धड़कन ऐसी कि जैसे ceased कर डाली।
जैसे आज चुप ने चुप के साथ ही बगावत कर डाली।
मेरी आँखों में सिर्फ गुमनामी ही सवाल बन कर खड़ी थी।
पेड़ों का सन्नाटा, मेरी चुप्पी से गहरा था। आसमान से भी दूर से आती एक निराली नज़र, जो पेड़ों के बीच में से झांकती मेरी ओर , मेरी राइट साइड में से देखती एक ओर आँख, जिस में बहुत ही गहरी झलकती ज़िंदगी की समझदारी, सब से अमेजिंग वो सुंदरता जिस में मौत और ज़िंदगी का अहसास सवाल बन कर मेरे तक अपने आप की तरंग भेज रहा था।
इतना लाज़वाब और इतना बेमिशाल वातावरण, जिस में खुदा के अहसास के बिना ओर कुछ भी नहीं था।
एक तरफ तो मेरी ज़ुबान वर्तालाप करती है और एक ओर तरफ में मेरा वजूद खामोशी की गहरी गर्दिश में सिर्फ एक गवाही दे रहा है। पेड़ों में से आती गहरी लरज़ती हुई नज़र, मेरे को मौत और ज़िंदगी दोनों के आगे खड़ा करती है।
मौत कहती है : क्यों मेरे को जीना है ?
ज़िंदगी कहती है : क्या तू मेरे को जीना है ?
दोनों का एक ही सवाल।
मैंने जीना है, मौत को या ज़िंदगी को
मैं मौत को क्या समझती हूँ और क्या मानती हूँ ?
मैं ज़िंदगी को क्या समझती हूँ और क्या मानती हूँ ?
इन दोनों से पहले मैं खुद को क्या समझती हूँ और क्या मानती हूँ ?
मैं क्या हूँ ?
खालीपन की एक गहरी गुफा
ज़िंदगी को क्या समझती हो ?
खुली आँखों का एक अनूठा सपना
मौत को क्या समझती हो ?
विश्राम, आराम और बे-आरामी के पार।
फिर अब तुम ने मौत की तरफ जाना है या ज़िंदगी की तरफ ?
कोई भी फ़र्क़ नहीं।
ज़िंदगी और मौत, यह दोनों अलग दिखाई देते थे पर अलग नहीं है। सो कोई भी फ़र्क़ नहीं।
आज जब मैं इस माहौल में खड़ी थी, जो मेरे लिए सवाल थे- उन का जवाब मेरी ही गवाही बन रहा था, तो आज लंबे अरसे बाद ख़्याल आया कि, यह सब सवाल जवाब का सिलसिला कब ख़त्म होगा
ज़िंदगी आपने आप में बहुत ही समझदार है। यह व्यक्ति की प्यास और भूख देख कर ही कदम लेती है। मैं देखती हूँ कि मेरे वजूद की जड़ इतनी गहरी क्यों थी। बहुत आरसा बीत गया। इस आरसे ने जड़ को गहरा करना ही था। ज़िंदगी आपने आप में बहुत ही कमाल की चीज़ है। जितनी हम इस की गहराई में जाएंगे -उतना ही यह हमारा मनोरजनिक साधन बन जाती है।
मौत का खेल है यह संसार , ज़िंदगी का नहीं। ज़िंदगी के मैदान में खेलने वाले थोड़े से ही खिलाड़ी हैं। ज़िंदगी के खिलाड़ी हम बन ही नहीं सकते,जब तक हम मौत को जान नहीं लेते। आज मौत और ज़िंदगी के आगे, इस लिए ही खड़ी हूँ कि मैंने भरपूर और सम्पुर्ण जीना था। ज़िंदगी को पूरा आलिंगन करना चाहती थी। मौत की समझ के बिना ज़िंदगी को झप्पी पा नहीं सकते।
आज मौत और ज़िंदगी की तरफ देख कर ,सिर्फ अपनी प्यास ही याद आती है। अगर प्यास न होती तो यह मुकाम न होता। मेरी प्यास इतनी गहरी थी कि मैं aeriana ( बेटी ) को भी झप्पी नहीं पाती थी, अगर मेरे में कोई ओर सोच ही होती थी। जिस किसी को भी मैं मिलना चाहती, मैं आपने पूरे दिल से ही मिलना चाहती।मेरे को अधूरेपन से बहुत गहरी allergie थी।
आज मौत और ज़िंदगी के आमने-सहमने खड़ना बहुत ही अनूठा अनुभव है। चुप ने ही चुप पर हमला किया हुआ है। ज़ुबान की खामोशी, नज़रों से बयान होती है। नज़रों की ख़ामोशी, खालीपन से ब्यान होती है। खालीपन अपना इज़हार फिर ख़ामोशी से करता है।
खामोशी के बीच खामोशी की झप्पी इतनी गहरी है कि इस आनंदमई अवस्था में मौत क्या, ज़िंदगी क्या, कुछ भी नहीं।
सो मेरे ख़ामोश वजूद की ख़ामोश नज़र, ख़ामोशी से सर झुका करके मौत और ज़िंदगी का स्वागत करती है
ज़िंदगी आपने आप में बहुत ही समझदार है। यह व्यक्ति की प्यास और भूख देख कर ही कदम लेती है। मैं देखती हूँ कि मेरे वजूद की जड़ इतनी गहरी क्यों थी। बहुत आरसा बीत गया। इस आरसे ने जड़ को गहरा करना ही था। ज़िंदगी आपने आप में बहुत ही कमाल की चीज़ है। जितनी हम इस की गहराई में जाएंगे -उतना ही यह हमारा मनोरजनिक साधन बन जाती है।
मौत का खेल है यह संसार , ज़िंदगी का नहीं। ज़िंदगी के मैदान में खेलने वाले थोड़े से ही खिलाड़ी हैं। ज़िंदगी के खिलाड़ी हम बन ही नहीं सकते,जब तक हम मौत को जान नहीं लेते। आज मौत और ज़िंदगी के आगे, इस लिए ही खड़ी हूँ कि मैंने भरपूर और सम्पुर्ण जीना था। ज़िंदगी को पूरा आलिंगन करना चाहती थी। मौत की समझ के बिना ज़िंदगी को झप्पी पा नहीं सकते।
आज मौत और ज़िंदगी की तरफ देख कर ,सिर्फ अपनी प्यास ही याद आती है। अगर प्यास न होती तो यह मुकाम न होता। मेरी प्यास इतनी गहरी थी कि मैं aeriana ( बेटी ) को भी झप्पी नहीं पाती थी, अगर मेरे में कोई ओर सोच ही होती थी। जिस किसी को भी मैं मिलना चाहती, मैं आपने पूरे दिल से ही मिलना चाहती।मेरे को अधूरेपन से बहुत गहरी allergie थी।
आज मौत और ज़िंदगी के आमने-सहमने खड़ना बहुत ही अनूठा अनुभव है। चुप ने ही चुप पर हमला किया हुआ है। ज़ुबान की खामोशी, नज़रों से बयान होती है। नज़रों की ख़ामोशी, खालीपन से ब्यान होती है। खालीपन अपना इज़हार फिर ख़ामोशी से करता है।
सो मेरे ख़ामोश वजूद की ख़ामोश नज़र, ख़ामोशी से सर झुका करके मौत और ज़िंदगी का स्वागत करती है