My life has been complete before 20 years. If I am alive today so I have no difference - because today is gift for me. This is the level of 'Jivan-Mukta' (free from living)
given in the Puranas itself.
It was 20 years ago:
When I was going through this experience:
What is awake and What is sleeping --- there is no difference.
Just sleeping and waking up was complete
It was 10 years ago:
When I was going through this experience:
What is life and What is death --- no difference.
Both were the same.
In every moment is not only my life but my moment is also complete.
What is incomplete in this my life - which is waiting for its completion.
I find the world very beautiful - I love the people very much
- My life has always been happy and loving,
yet my attachment to death has never diminished.
What is there in this cave of my existence
- that teaches me to love death only through death.
In a deep silent state of deep silence, when my corpse was lying in front of me
- and some of my own sage experience was smiling at me -
then I was the one who told death that
"now you are behind me - and I am beyond you".
Then death had told me one thing - which is understood today.
Death said that
"It is your thinking that you have crossed from me. No, it's not done yet. To cross me, one has to win moment by moment. When you conquer every moment - then you will know what I had to say today --- My identity is hidden in the identity of the time."
Death said that when I win every moment,
then I will understand what death said -
while I have been losing every moment for the last 10 years.
But my failure never hurts me - I was excited and encouraged -
the more my trust was broken, the more my confidence grew.
I told all the people around you that I failed in grade 6,
but would be in grade 7.
The person who failed in everyone's eyes was me.
Only successful I was in my own eyes
All my observation failed
All my feelings hanged
All my thoughts failed
Every step of mine proved to be wrong
My every moment slap me
Every breath of mine betrayed me
My breath is telling me that
"I am far away from you. I don't even have a relationship with you. When were we both together?"
Breathe: The only thing I exist was not with me - so how will I be?
Unknown dimension, I am alone, in a place that I have never heard of.
Not even breath. Even body is not a companion.
No experience, no thinking. Not even day and night.
Don't know anything I unaware of me.
I don't know whether I live or die.
Whom to say that someone completely failed - that was me.
'Goga' (my parrot) my cute son: Who died suddenly.
Whose voice had the voice of God,
who had the experience of God in his eyes.
On his death, a sweet gratifying tear came.
The feeling of tears told something to Goge.
(Goge! listen son;
I did not leave you until we were together even after we died.
Today I ask God to unite us forever)
My prayer stopped my moment. My moment was in a pause position.
Deep silence took me in the lap of time.
When I was 13 years old,
I was with my mother in the Choda-bazaar in Ludhiana.
Suddenly:
For the first time I felt that someone was with me.
His light sound was heard clearly to me.
Not through the body - it was visible from somewhere else.
The sound was not heard from the ears - it was heard from somewhere else.
I knew he was with me. and In me.
His smile, his walk, his dress, all was visible to me.
This was my first meeting - someone who was mine - who was in my particle - someone who was part of my existence - who was in the body - but was beyond the body - that person, who I had a patron without body; I knew him.
After that, I have always been with that unknowing guardian - may be like, he is also with me, as I promised with Gogo.
When I promised with Gogo, my new dimension opened up.
Now when my life put the time-table of the Eon ahead of me.
My failed life was a pass certificate.
Now I understood - when I promised Goga and that sage who is my patron- that!
and what death told me- Both
(You have experienced me - I have not crossed it yet.)
To overcome death, that is when we can enter death and life like this
- sometimes India - sometimes Europe -
sometimes Canada and sometimes America.
The experience of death before dying,
becomes a companion only at the time of death.
Because the person is aware that the body has to change, I do not die.
To go beyond death means to see and go through both death and life.
How life wears the veneer of 5 elements - and how it takes off,
playing in such a beautiful experience,
my footsteps even today consider life as useless.
which is filled with desire to get the universe to hug.
And my thirst is how to love everyone
so that the world becomes happy
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ज़िंदगी में कुछ भी फालतू नहीं - पर ज़िंदगी खुद में ही फालतू है
ज़िंदगी की गहरी गुफा में बहुत वार जाने का मौका मिला, जब भी मैं जाती हूँ -वहां से आने को कभी दिल नहीं किया। सांसारिक खेत्र कह दो या जिस्मी-खेत्र , दोनों एक ही है। जब भी मैं वहां से वापस आती हूँ तो यही चाहना से भरी होती हूँ कि कैसे मरने के बाद भी ज़िंदा रह कर मैं अपने फालतू-पण के अनुभव से फ्री हो जाऊँ, क्योंकि वहां पर जा के ही यह अनुभव गहरा होता है कि ज़िंदगी बहुत ही गहरी और प्यारी खेल है- इस को मरने के बाद भी कैसे बरकरार रख सकती हूँ।
२० साल से मेरा जीना पूरा हो चुक्का है। आज जीवित हूँ तो मेरे को कोई फर्क नहीं है- क्योंकि यह मेरे को तोहफा मिला हुआ है। शयद इस को ही पुराण में जीवन-मुक्ति का लेवल दिया गया है।
२० साल पहले की बात है: जब मेरे में सदा यही अनुभव रहता था कि क्या है जागना और क्या है सोना--- कोई भी फर्क नहीं। बस मेरा सोना और जागना पूरा हो चुक्का था
१० साल पहले की बात है: जब मैं इस अनुभव से ही गुज़र रही थी कि क्या है ज़िंदगी और क्या है मौत --- कोई भी फर्क नहीं। दोनों एक जैसे ही हो चुक्के थे।
हर पल मेरी ज़िंदगी ही पूरी नहीं - मेरा पल भी पूरा है। इस पूरेपन में ऐसा क्या अधूरापन है- जो कि पूरा होने के इंतज़ार में है।
मेरे को संसार बहुत सूंदर लगता है - मेरे को लोगों का बहुत प्यार आता है - मेरा जीना सदा सुखी और प्यार करने वाला रहा , फिर भी मेरा मौत से लगाव कभी कम नहीं हुआ। मेरे वजूद की इस गुफ़ा में ऐसा क्या है - जो मेरे को वार वार मौत से ही प्यार करने की सीख देता है। गहरी ख़ामोशी की गहरी चुप अवस्था में, जब मेरी ही लोथ मेरे आगे पड़ी थी - और मेरा ही कोई ऋषि अनुभव मेरे को देख मुस्करा रहा था - तब मैंने ही तो मौत को कहा था कि अब तू मेरे पीछे हो गई - और मैं तेरे से आगे निकल गई। तब मौत ने एक बात कही थी -जिस की समझ उस वक़्त मेरे को नहीं आई थी- आज आ रही है।
मौत ने कहा था कि यह तेरी सोच है कि तू मेरे से पार हो गई। नहीं, अभी नहीं हुई। मेरे को पार करने के लिए, पल पल को जीतना पड़ेगा। जब पल पल को जीत लिया -तब जा के पता चलेगा कि मेरा आज का कहना क्या था--- वक़्त की पहचान में मेरी पहचान छुपी हुई है।
मौत ने कहा था कि पल पल को जब मैं जीत जाऊँगी, तब मेरे को समझ आएगी कि मौत ने क्या कहा था - जब कि पिछले १० साल से मैं हर पल हारती ही आई हूँ।
पर मेरा फेल होना, हारना ,मेरे को कभी दर्द नहीं देता था- मेरे में उत्साह और हौंसला बढ़ जाता था- मेरा भरोसा जितना टूटता, उतना ही मेरा भरोसा बढ़ता गया। मैंने आपने आस-पास के सब लोगों को यही कहना कि मैं ७ क्लास में से फेल हो गई पर ८ में होगी। सब की नज़र में फेल हुआ व्यक्ति मैं थी . सिर्फ सफल मैं खुद की नज़र में ही थी
मेरा हर अनुभव फेल हो गया
मेरा हर तुजर्बा असफल रहा
मेरी हर भावना को फांसी लगी
मेरी हर सोच न-कामयाब रही
मेरा हर कदम गलत साबित हुआ
मेरे हर पल ने मेरे चांटा मारा
मेरी हर सांस ने मेरे को धोख़ा दिया
मेरे को ही आ रही सांस मेरे को ही कहती है कि मैं ते तेरे से बहुत दूर हूँ। तेरा मेरा नाता है ही नहीं।कब हम दोनों एक साथ थे ?
साँसें: जो मेरा वजूद है, वो ही मेरे साथ नहीं थी- तो मेरा हाल कैसा होगा ?
अज्ञात खेत्र, मैं अकेली, ऐसी जगह पर जिस के बारे में कभी सुना नहीं। साँसें भी साथ नहीं। जिस्म भी साथी नहीं। कोई अनुभव नहीं , कोई सोच नहीं। दिन रात भी नहीं । कुछ भी पता नहीं। मैं मेरे से ही अनजान। जीती हूँ या मर गई , यह भी पता नहीं। जिस को कहतें हैं कि कोई सम्पूर्ण रूप में फेल -वो मैं थी।
गोगा मेरा बाल परिंदा बेटा: जिस की अचानक मौत हो गई। जिस की आवाज़ में खुदा की आवाज़ थी , जिस की आँखों में खुदा का अनुभव था। उस की मौत पर प्यारा सा संतुष्ट करने वाला आंसू आया। आंसू का अहसास ने कुछ गोगे से कहा।
(गोगे, मेरे सोहने बेटे , जब तक हम दोनों मरने के बाद भी साथ नहीं हो जाते , तब तक मैंने तेरा साथ नहीं छोड़ना। आज यही मैं खुदा से मांगती हूँ कि हम को सदा के लिए एक कर दे )
मेरी प्रर्थना ने मेरे पल को रोक दिया। मेरा पल पॉज स्थिति में आ गया। गहरी खामोशी मेरे को वक़्त की गोद में ले गई।
जब मं १३ साल की थी, मैं अपनी माँ के साथ लुधिआना के चौड़े- बाज़ार में थी। अचानक: पहली बार मेरे को ऐसे लगा कि कोई मेरे साथ है। उस की आहट मेरे को साफ़ सुनाई दे रही थी। आँखों से नहीं -वो कहीं ओर से दिखाई देता था। आहट कानों से नहीं - कहीं ओर से सुनाई देती थी। मैं जानती थी कि वो मेरे साथ है। उस की मुस्कान, उस का चलना, उस का लिबास, सब मेरे को दिखाई देता था। यह मेरी पहली मुलाकात थी - किसी ऐसे से, जो मेरा था - जो मेरे कण कण में था - जिस को मेरे ही वजूद का कोई ऐसा हिस्सा - जो कि जिस्म में ही था- पर जिस्म से पार का था- वो उस को, जो जिस्म के बिना भी मेरा साथी था; मैं उस को पहचानती थी।
उस के बाद, उस अनजाने रखवाले का साथ सदा रहा है- शयद वो भी मेरा साथ ऐसे है, जैसे मैंने गोगे के साथ वादा किया।
गोगे के साथ जब वादा किया तो मेरा नया खेत्र खुल गया।
अब जब मेरी ज़िंदगी ने युग का टाइम-टेबल मेरे आगे रखा। मेरी फेल ज़िंदगी का पास होने का सार्टिफिकेट था।
अब मेरे को समझ आई- जब मैंने गोगे से वादा किया और वो ऋषि , जो मेरा रखवाला है- उस की और जो मेरे को मौत ने कहा था कि
( तुम ने मेरा अनुभव किया है- मेरे से अभी पार नहीं हुई । )
मौत से पार हो जाना, वो होता है- जब हम मौत और जीवन में ऐसे प्रवेश हो सकें - जैसे कभी इंडिया- कभी यूरोप - कभी कनाडा और कभी अमेरिका।
मरने से पहले मौत का अनुभव, मौत के वक़्त सिर्फ साथी बनता है। क्योंकि व्यक्ति जान चुक्का है कि जिस्म बदलना है , मैं नहीं मरना।
मौत से पार हो जाने का मतलब यह है कि मौत और ज़िंदगी दोनों के आर-पार देखना और जाना।
ज़िंदगी कैसे ५ तत्त के लिबास को पहनती है- और कैसे उतारती है , ऐसे बहुत सूंदर अनुभव की खेल में चलतें मेरे क़दम आज भी ज़िंदगी को फ़ालतू मानतें हैं।
सच में ही मेरी भूख बहुत गहरी भूख है- जो ब्रह्माण्ड को झप्पी पाने की चाहना में भरी हुये है। और मेरी प्यास यही है कि कैसे सब को प्यार करूँ कि सब संसार सुखी हो जाए